4/07/2010

भई नई रे ! नवोंखंडों आरती-१

श्री विजयाभिनंद बुद्धजीकी आरती, प्रेम मगन होय उतारती !
सखी आप पीया पर वारती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!
दुष्टाई सबोंकी संघारती, सुख अखंड आनन्द विस्तारती !
जन सचराचर तारती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


सैयां सब सिनगार साजती, मिने सूरत पियाजीकी विराजती !
ये शोभा इतहीं छाजती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


झालर अगणित बाजे ले बाजती, ब्रह्माण्डनें नौवत गाजती !
कलियुग सेना सुन भाजती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


सप्त धात शून्य मंडल थाल, निरंजन ज्योति भई उजाल !
झलहलिया इत नूर जमाल, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


पसरी दया प्रगटे दयाल, काटे दुनीके कर्म जाल !
चेतन ओयापी भये निहाल, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये सेना सहित त्रिपुरार, आये ब्रह्माजी पढ़त वेड मुख चार !
विष्णु बोलत वाणी जय जयकार, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये धरम राज और इन्द्र वरुण, नारद मुनि गुण गन्धर्व चौदह भुवन !
सुर असुरों सबों लई शरण, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये सनकादिक चारों थम्भ, लिये खड़े संग विष्णु ब्रह्माण्ड !
जो ब्रह्म अनुभवी हुए अखंड, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


जिन हद कर दी नवधा भगत, जुदी कर गाई पाई प्रेम जुगत !
यों आये शुक व्यास बड़ी मत, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये नवनाथ चौरासी सिद्ध, बरस्या नूर सकल या विध !
इत आये बुद्धजी ऐसी किध, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये चारों संप्रदायके साधुजन, चार आश्रम और चार वरन !
चारों खूटोंके आये गावते गुण, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये गच्छ चौरासी अरहंती, दत्तजी दशनामी जो महंती !
आये कर्म उपासनी वेदांती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये षटदर्शनी षट शास्त्रवेदी, बहत्तर फिरके आये अथर्ववेदी !
आये सकल कैदी और बेकैदी, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!



श्री बुद्धजीकी जोतें कियो प्रकाश, त्रिलोकीको तिमिर कियो नाश !
लीला खेले अखण्ड रास विलास, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!



पियाजी हुकुमें गावें महामत, उडायो असत थाप्यो सत !
सब पर कलश हुओ आखरत, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!



श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम