4/13/2010

गृहस्थाश्रम वालोंके लिए

आचार संहिता
त्याग, तपस्या, आत्म चिन्तन एवं साक्षात्कारके द्वारा महापुरूषोंने जिस परम ( पद पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं अखण्ड परमधाम ) को प्राप्त किया है, सामान्य व्यक्तिके लिए भी वह सुलभ बन सके इस उद्देश्यसे यह आचार संहिता उन्हीं महापुरूषों द्वारा निर्दिष्ट सोपानके आधार पर यहां प्रस्तुत की जा रही है.


गृहस्थाश्रम वालोंके लिए
शौच:-प्रात: ब्रहमुहूर्तमें उठकर शौचादि क्रियासे निवृत्त होकर स्नान करें.


सन्तोष:-सदैव धर्मप्रचार एवं समाज सेवाकी भावना रखते हुए धन लोलुपतासे दूर रहें.


स्वाध्याय:-सेवा पूजा, नित्य पाठ एवं श्री तारतम सागर का पाठ पारायण तथा मनन करते हुए आत्मा चिन्तन करें.


जप:-प्रात: सायं १०८ वार श्री तारतम महामन्त्रका जाप करें. एवं २५ पक्ष परमधामकी चिंतवनी करें.

प्रसाद ग्रहण:-चरणामृत प्रसाद लिए बिना अन्न ग्रहण न करें. परदेशमें महाप्रसाद साथमें रखें.

दर्शन:-अपने गांव अथवा शहरमें हो तो नित्यप्रति दर्शन करने जायें. ऐसा संभव न हो तो सप्ताह में एकबार अवश्य दर्शन करें.

सेवा:-सन्त गुरुजन तथा सुन्दरसाथकी यथा शक्ति सेवा करें. उनसे विनम्रता का व्यवहार करें. कभी अभिमान न दिखायें.

दान:-अपनी कमाईका दशा  प्रतिसत भाग परोपकार एवं सेवामें लगायें. तीर्थसे आए भेटियाको यथाशक्य तीर्थ भेंट दें.

भक्ति:-अपने इष्ट श्रीकृष्ण-श्रीराज श्यामाजीकी भक्ति अनन्यभावसे करें. जन्म, मृत्यु विवाह, यज्ञोपवित संस्कार आदि प्रसंगों पर अपने इष्टकी पूजा करें तथा स्थानीय प्रचलित मान्यताओंको भी ध्यानमें रखें.

तीर्थ दर्शन:-श्रीकृष्ण प्रणामी धर्म-निजानन्द संप्रदायके परमपावन तीर्थ श्री ५ नवतनपुरी धामके दर्शन जीवनमें अवश्य करें.

प्रणाम:-आपसमें मिलते समय छोटे बडोंका भेद-भाव न रखते हुए प्रणामका व्यवहार करें.

सत्संग:-उठते बैठते, चलते फिरते परमात्माका स्मरण करें. यथा संभव सन्त महात्माओं तथा धर्मप्रचारकोंसे धर्मचर्चा सुनें.

उपवास:-अष्टमी, चतुर्दशी तथा सतगुरुओंके जन्म तथा धामगमन तिथियों पर यथा शक्य उपवास करें.

अहिंसा:-मन, वचन कर्मसे अहिंसा व्रत पालन करें तथा प्राणी मात्रमें दया भाव रखें.

आहार शुद्धि:-शुद्ध सात्विक आहार ग्रहण करें. मांसाहार, मद्यपान, तम्बाकू जानी पदार्थों तथा मादक पदार्थोंका सेवन न करें.

आचरण:-हमेशा सत्य व्यवहार रखें. परस्त्रीको माता समझें एवं दुर्व्यसनोसे दूर रहें.

प्रायश्चित:- उपर्युक्त नियमोंमें भूल हो जाने पर श्री तारतम महामंत्रका जाप करें, उपवास करें तथा तीर्थमें जाकर सदगुरु सुन्दरसाथके बीच प्रायश्चित करें. प्रणाम !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

4/12/2010

सन्त महात्माओंके लिए

आचार संहिता
त्याग, तपस्या, आत्म चिन्तन एवं साक्षात्कारके द्वारा महापुरूषोंने जिस परम ( पद पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं अखण्ड परमधाम ) को प्राप्त किया है, सामान्य व्यक्तिके लिए भी वह सुलभ बन सके इस उद्देश्यसे यह आचार संहिता उन्हीं महापुरूषों द्वारा निर्दिष्ट सोपानके आधार पर यहां प्रस्तुत की जा रही है.

सन्त महात्माओंके लिए
मौन:-धर्मके अतिरिक्त अन्य कोई भी अनावश्यक बातें न करें.

दर्शन:-पूर्णब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत श्रीकृष्ण-अर्थात श्रीराजश्यामाजीके स्वरूपको अपने हृदयमें धारण करें.

सात्विक भोजन:-सादा एवं सात्विक भोजन करें.

स्थिर आसन:-अपने स्थान पर ही टिके रहें. धर्म प्रचारके अतिरिक्त व्यर्थ भ्रमण न करें.

ब्रह्मचर्य:-ब्रह्मचर्यका पालन करें तथा परस्त्रीको माताके समान समझें.

संतोष:-श्री धामधनी पर विशवास रखते हुए सदैव धर्म प्रचार तथा समाज सेवाकी भावना रखें और धन लोलुपतासे दूर रहें.

गुरुभक्ति:-परमात्माका अनुभव करवाने वाले अपने सद्गुरुके अन्दर परमात्माके दर्शन करें एवं उनको परमात्माके साक्षात् प्रतिनिधि समझकर उनकी सेवा करें एवं उनके आदेशका पालन करें.

स्वाध्याय:-रात दिन लिखने पढ़ने, सिखाने सिकाने तथा ध्यान, जप, चिन्तनमें व्यातीत करें.

व्यवहार:-आपसमें सदा प्रेमका व्यवहार रखें, कभी किसीका दिल न दुखावें.

प्रायश्चित:- उपरोक्त नियमोंमें भंग होने पर उपवास, जप, क्षमायाचना एवं तीर्थ दर्शनके द्वारा प्रायश्चित कर लें.

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

4/11/2010

अथ परायण आरंभकी विधि

साप्ताहिक, अखण्ड अथवा गोटा पारायणके अवसर पर सर्व प्रथम वधाईयाँ गायें. फिर चन्दन चढावनी पूर्णब्रह्म, आरती, परिक्रमा, स्वरूप (मंगलाचरण) के पश्चात भोग लगाकर ५ वार श्री तारतम मन्त्र जापके पश्चात पारायण पाठ प्रारंभ करें.

पूर्णाहुतिकी विधि:-
पारायण पूर्णाहुतिके अवसर पर अन्तिम प्रकरण तथा आरंभकी १७ चौपाईयाँ पाठकर रूमाल चढ़ायें. फिर पर न आवे तोले एकने प्रकरण तथा बधाईयाँ गाकर चन्दन चढावनी, आरती, परिक्रमा, स्वरूपके पश्चात भोग लगायें. अन्तमें ५ बार श्री तारतम महाँ मन्त्रका जाप करें.

गृह प्रवेशकी विधि:-
अपनी छमतानुसार घरको सजायें श्री तारतमवाणी सिर पर रखकर जय जयकारके साथ नूतन गृहमें प्रवेश करें तत्पश्चात बधाईयाँ, चन्दन चढावनी, आरती, परिक्रमा, स्वरूप पाठ, भोग बोलकर ५ बार श्री तारतम महाँ मन्त्रका जाप करें तथा आगन्तुक सुन्दरसाथको प्रसाद वितरण करें. प्रेम परणाम !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

अथ अंतर्ध्यान

संवत १७५१ श्रावण कृष्ण त्रितीयाकी रात्रि १४ घड़ी व्यतीत हो जाने पर श्रीजी धाम पधारे थे. चतुर्थीको दिन भर उनका अन्तिम दर्शनकर पंचमीको उनकी देहको श्री गुमटजीमें पधराया गया. इसलिए त्रितीयाके दिन उपवास रखकर सायं अल्पाहार करना चाहिए. चतुर्थिको दोनों समय उपवास रखना चाहिए. पंचमीको आरती तथा थालभोग पश्चात भोजन ग्रहण करना चाहिए व उपवास रखना असंभव हो तो फलाहार करें. पंचमी तिथिसे ही वीतक कथा प्रारंभ हो जाती है. जो श्रावण कृष्ण सप्तमी तक चलती है.

तीज एवं चौथी पर गाए जाने वाले प्रकरण:-
१. अब हम धाम चालत हैं - किरंतन-प्र. ९२
२. सैयां हम धाम चले - किरंतन-प्र. ८८
३. अब हम चले धाम को - किरंतन-प्र. ९३
४. चलो चलो रे साथ - किरंतन-प्र. ८९
५. निजनाम सोई जाहर हुआ - किरंतन-प्र. ७६
६. षतऋतुके सभी प्रकरण....

संवत १७१२ भाद्र शुक्ल १४ की रात्रि श्री देवचन्द्रजी महाराज धाम पधारे थे. अत: इस तिथिमें उपवास रखकर निम्न प्रकरणोंको गाना चाहिए.
१. ओही ओही करती फीरों - प्रकाश-हि. प्र. ६
२. पुकार चले मेरे पीऊजी - प्रकाश- हि.प्र. ८
३. मेरे धनी धामके दुलाहा - किरंतन-प्र. ७५
४. मागत हों मेरे दुलहा - किरंतन-प्र. ६२

सं १७५० वैशाख शुक्ल ८ के दिन श्री बाईजीराज महाराजीका धामगमन हुआ था. अत: उस दिन उपवास रखकर निम्न प्रकरण गायें.
१. क्यों दियो रे विछोहा दुलहा - परिक्रमा- प्र. १८

सं १७८८ पौष कृष्ण तृतीयाको महाराजा छत्रसालका धामगमन हुआ था. उस दिन उपवास रखकर निम्न प्रकरणोंको गाना चाहिए.
१. मेरे मीठे बोले साथाजी - किरंतन-प्र. ८०
२. आग पडो तिन कायरो - किरंतन-प्र. ८७

नोट: सभी धामगमन तिथियों पर विरहके प्रकरण गायें तथा आरती एवं भोग पश्चात प्रसाद ग्रहण करें.

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

अथ जन्मोत्सव

१. भाद्र कृष्ण अष्टमीको श्री कृष्णजन्मोत्सव मनायें. दिन भर श्री कृष्णके चरित्रोंका श्रवण एवं कीर्तन कर मध्यरात्रिके अवसर पर प्रगट वाणीमेंसे नन्द घर कियो प्रवेश तक पाठ कर मन्दिरका पर्दा खोलें. अथवा योगमायानो देह धरीने-प्रकरण गायें. पश्चात भोग लगायें.

२. भाद्र शुक्ल अष्टमीमें दिनको ११ बजे श्री राधाजीका जन्मोत्सव मनायें. जोग मायानो देह धरीने प्रकरण गाकर मन्दिरका पर्दा खोलें. तत्पश्चात वधाई, आरती एवं भोग लगायें.

३. आश्विन कृष्ण चतुर्दशीके दिन प्रात: १० बजे श्रीजीका जन्मोत्सव मनायें. इस दिन श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगरमें विशेष रूपसे वार्षिक महोत्सव मनाया जाता है.

४. आश्विन शुक्ल चतुर्दशीको रात्रि ४ बजे श्री देवचंद्रजी महाराजका जन्मोत्सव मनायें.

५. आश्विन शुक्ल पूर्णिमाको शरद पूर्मिमा जागनी रास महोत्सव मनाना चाहिए. रात भर जागकर रासकी रामतें गायें. इस दिन श्री ५ पद्मावती पुरी धाममें वार्षिक महोत्सव मनाया जाता है.

६. चैत्र शुक्ल पूर्णिमाको प्रात: १० बजे श्री बाईजुराज जयन्ती मनायें.  इस दिन मंगलपुरी धाममें वार्षिक महोत्सव मनाया जाता है.

७. जेष्ठ शुक्ल तृतीयाको महाराज छत्रसालजीका जन्मोत्सव मनायें.
नोट:- प्रत्येक जन्मोत्सवों पर वधाई, आरती, स्वरूप पाठ एवं भोग विधिवत होने चाहिए. प्रसाद ग्रहणके पश्चात ही भोजन करें.

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

श्री कृष्णनाम महिमा

पर न आवे तोले एकने, मुख श्रीकृष्ण कहंत !
प्रसिध प्रगट पाधरी, किवता कीव करंत !! १ !!

कोट करो नरमेध, अस्वमेध अनंत !
अनेक धरम दारा विषे, तीरथ वास वसंत !! २ !!

सिध करो साधना, विप्र मुख वेद वदंत !
सकल क्रियासुं धरम पालतां, दया करो जीव जनत !! ३ !!

व्रत करो विध विधनां, सती थाओ सीलवंत !
वेष धरो साध संतना, ग्नानी ग्नान कथंत !! ४ !!

तपसी बहुविध देह दमो, सरवा अंग दुःख सहंत !
पर तोले न आवे एकने, मुख श्रीकृष्ण कहंत !! ५ !!

मेहेराज कहे मुख ए धन, जो वली रुदे रमंत !
चौदे भवन ते जीतियो, धन धन ए कुलवंत !! ६ !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

4/09/2010

आनन्द मंगल

सदा  आनन्द मंगल में रहिये, सदा आनन्द मंगलमें रहिये !
महाप्रसाद और चरणामृत, ये सुख साथ ही में पाईए !!

इसक सुराही प्रेमका प्याला, अन्तर आतम छकि रहिये !
तन सोवे रूह निशदिन जागे, धामधनीके चरणों रहिये !!

अष्ट पहर दिन चौंसठ घडियां, निशदिन पीउ पीउ पीउ कहिए !
छत्रसाल भजो धाम धनीजीको, और देवनसों क्या चाहिये !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

पौढ़ावानी-४

राजाके गुण गाऊं, हैं अपने श्यामाके गुण गाऊं !
गुण गाऊं चरन चित लाऊं, बहुरि न भवजल आऊं !!

चुन चुन कलियाँ मैं सेज बिछाऊं, बंगलन फूल भराऊं !
सेज सुरंगी पर पियाजी पौढ़ाऊं, करसे बीडी आरोगाऊं !!

हेत करके तरवा सोहराऊं, करसों विंजना डोलाऊं !
मीठी मीठी बात करत पीया हमसों, सुन सुनके सुख पाऊं !!

कहत मुकुन्द पीया मिले हमसों, हंसी हंसी  कंठ लगाऊं !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम   

सयन-आरती

आरती करूं मारा वालाजीने केरी, 
मारे हैयड़े ते हर्ष न माय !
मारा वाला आगल ताल मृदंग झांझ जन्त्र बाजे, 
सखियों निरत करे आने गावे !!

मारा वालाजीनुं सुन्दर वदन सुहामनु,
कानी शोभानो नहीं पार !
सखियो कहे मारा वालाजीनां ऊपर,
तन मन जीव करूं बलिहार !!

सुन्दर स्वरूप जुगल दोऊ ऊपर, 
श्री महामति जाय बलिहार !!  

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

4/08/2010

भोग-१

नंगन जड़ित चौकी पर दोऊ, श्रीजुगल स्वरूप विराजे !
धरो है थाल आगे हित चितसों, षटरस व्यंजन साजे !!

जेंवत जुगल जोड़ी सुख पावत, अचवाऊं ले जल झारी !
 लेत पान पावत हित चितसों, हिरदे सों हितकारी !!

कोटी जातां ब्रह्म करी थाके, सो जोथान नहिं पाये !
सो जूठन धनी सहज कृपासों, पंचम निशदिन पाये !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

स्वरूप

स्वरूप सुन्दर सनकूल सकोमल, रूह देख नैना खोल नूरजमाल !
फेर फेर मेहेबूब आवत हृदे,किया किनने तेरा कौल फ़ैल ऐ हाल !!

जामा जडाव जुड्यो अंग जुगतें, चार हारों करी अम्बरे झलकार !
जगमगे पाग ए जोत जावर ज्यों, मीठे मुख नैनों पर जाऊं बलिहार !!

लाल अधुर हंसत मुख हरवटी, नासिका तिलक निलवट भौहें केश !
श्रवण भूषण मुख दंत मीठी रसना, ये देख दर्शन आवे जोश आवेश !!

बाहें चूड़ी बाजू बन्ध सोहें, फूम्मक पहोंची कांडों कड़ी हस्त कमल मुंदरी !
नखका नूर चीर चढ्या आसमानमें, ज्यों हक़ चलवन करे सब अंगुरी !!

रोशनी पटुके करी अवकाशमें, चरन भूषण जामे इजार झांई !
कहे महामति मोमिन रूह दिलको, माशूक खैंचे तोहे अरस माहीं !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम
                

4/07/2010

भई नई रे ! नवोंखंडों आरती-१

श्री विजयाभिनंद बुद्धजीकी आरती, प्रेम मगन होय उतारती !
सखी आप पीया पर वारती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!
दुष्टाई सबोंकी संघारती, सुख अखंड आनन्द विस्तारती !
जन सचराचर तारती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


सैयां सब सिनगार साजती, मिने सूरत पियाजीकी विराजती !
ये शोभा इतहीं छाजती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


झालर अगणित बाजे ले बाजती, ब्रह्माण्डनें नौवत गाजती !
कलियुग सेना सुन भाजती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


सप्त धात शून्य मंडल थाल, निरंजन ज्योति भई उजाल !
झलहलिया इत नूर जमाल, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


पसरी दया प्रगटे दयाल, काटे दुनीके कर्म जाल !
चेतन ओयापी भये निहाल, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये सेना सहित त्रिपुरार, आये ब्रह्माजी पढ़त वेड मुख चार !
विष्णु बोलत वाणी जय जयकार, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये धरम राज और इन्द्र वरुण, नारद मुनि गुण गन्धर्व चौदह भुवन !
सुर असुरों सबों लई शरण, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये सनकादिक चारों थम्भ, लिये खड़े संग विष्णु ब्रह्माण्ड !
जो ब्रह्म अनुभवी हुए अखंड, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


जिन हद कर दी नवधा भगत, जुदी कर गाई पाई प्रेम जुगत !
यों आये शुक व्यास बड़ी मत, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये नवनाथ चौरासी सिद्ध, बरस्या नूर सकल या विध !
इत आये बुद्धजी ऐसी किध, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये चारों संप्रदायके साधुजन, चार आश्रम और चार वरन !
चारों खूटोंके आये गावते गुण, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये गच्छ चौरासी अरहंती, दत्तजी दशनामी जो महंती !
आये कर्म उपासनी वेदांती, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!


आये षटदर्शनी षट शास्त्रवेदी, बहत्तर फिरके आये अथर्ववेदी !
आये सकल कैदी और बेकैदी, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!



श्री बुद्धजीकी जोतें कियो प्रकाश, त्रिलोकीको तिमिर कियो नाश !
लीला खेले अखण्ड रास विलास, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!



पियाजी हुकुमें गावें महामत, उडायो असत थाप्यो सत !
सब पर कलश हुओ आखरत, भई नई रे नवोंखंडों आरती !!



श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

आरती-२

कंचन थाल चहुं मुख दिवला, दीपक ज्योति प्रकाशी !
करत आरती जियावर रानी, आनन्द अंग उलासी !!

जुगलस्वरूप सुन्दर सुखदायक, श्याम धामधनी सोहें !
मंगल रसिक वदनकी शोभा, निरखंता मन मोहें !!

सखियां निरत करें और गावें, उमंग अंग अपार !
ताल मृदंग झांझ जंत्र बाजें सखियां, बोलत जय जयकार !!

वाढावे मुक्ताफल सखियां, जियावर श्याम सुहागी !
तन मन जीव निछावर कीन्हों, श्री महामति चरणो लागी !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

पूर्णब्रह्म

पूर्णब्रह्म ब्रह्म से न्यारे, आनन्द अखंड अपारे !
शिव सनकादिक आदिके इच्छित, शेष न पावत पारे !!

अगम जानि के निगम कहाये, खोजी खोजी पचिहारे !
जानिके मूल धनी अंगना अपनी, सो घर आये हमारे !!

श्री ठकुराणीजी सखियन सुधां, लेकर संग पधारे !
त्रिगुण फांसके फंद परे थे, सो फंदा निरावारे !!

वारी वारी जाऊं मैं अपने पीया पर, शोभा मुखहुं न आवे !
सिंहासन आसन बैठारे, छत्रशाल गुण गावे !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

सद्गुरु स्तुति

जय जय सतगुरु आरती तेरी, निर्मल दृष्टि करी जिन मेरी !!

तारतम ज्ञान हाथ कर दीन्हों, क्षीर नीर को निर्णय कीन्हों !!

पिंड ब्रह्माण्ड लखाये दोई, पूरण ब्रह्म बिन और नहीं कोई !!

मोह तत्त्व उपज्यो है सोई, जो उपज्यो सो तो रह्यो न कोई !!

बैठे सिंहासन जुगल विहारी, जुगल विहारी पीया नवल विहारी !!

छबी निरखत सतगुरु बली हारी, छबी निरखत महामति बली हारी !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

आरती-१

आनन्द आरती संझा कीजे, नवल किशोर निरखि सुख लीजै !

पहली आरती व्रजमें वासा, सब सखियन मिली देखे तमासा !!

दूसरी आरती रासमें आये, अक्षर मनोरथ पूरण कराये !!

तीसरी आरती श्याम सुहाई, सुर असुरन धनी सबन मिलाई !!

चौथी आरती बुद्धजी मन भाई, तारतम ज्योति करी रोशनाई !!

पंचमी आरती विजयाभिनन्दन, जागनी लीला कलियुग निकंदन !!

आरती यह श्री महामति गाई, आसादास सुनत सुख पाई !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

गौरी-२

 मुरली कौन बजावे द्वारे मेरे, मुरली कौन बजावे ! बांकी बांकी तान कहत मुरलीमें, राधेके गुण गावे !!

हाथ लकुटिया कांध कमलिया, नन्दजीके धेनु चरावे !
इत गोकुल उत मथुरा नगरी, बीचमें दान चुकावे !!

पैठि पाताल कालीनाग नाथ्यो, फणपर निरत करावे !
छत्रसाल नागर बलिहारी , चरन कमल बलि जावे !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम  

गौरी-१

वंशी ध्वनी प्राण हरे, सुनत मुरली ध्वनी प्राण हरे !
गोप बधू श्रवनन सुनी धाई, टोना सहज परे !!

विसरी सुधि शरीर सजन पति, पिता पुत्र विसरे !
लोक लाज कुलकान विसरी गई, रही श्याम रट रे !!

वस्तर त्यागी नागिन उठि धाई, उलटे सिनगार करे !
चली चली गई जहां श्याम मनोहर, मुरली अधर धरे !!

लियो है लगाय श्याम उर अपने, विविध विलास करे !
दास मुकुन्द पीया मिलीं प्यारी, बहुरि न आई घरे !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

झीलना

श्री जमुनाजी के घाट में, अमृतवन पाट मे !
करत क्रीड़ा जल जोयना, संग सोहे श्यामा !!
सच्चिदानन्द मन भावना, संग सोहे श्यामा !!

सकल सिनगार किये, अजब तिलक दिये !
रंग रंगीले दोऊ रंगना, संग सोहे श्यामा !!

राजित किशोर किशोरी, शोभित जुगल जोड़ी !
राज रसिक पीया प्रेमना, संग सोहे श्यामा !!

प्रीतिसों प्रीतम प्यारी, निरखत नवरंग वारी !
श्रीजी अखंड सुख निजधामना, संग सोहे श्यामा !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

अथ सायंकालीन सेवापूजा:- स्तुति

स्तुति
वन्दौं सतगुरु चरनको, करूं प्रेम परनाम !
अशुभ हरण मंगल करन, श्री देवचन्द्रजी नाम !!

देवचन्द्रजीको दरश दियो, जो है पूरण रूप !
तारतमको तत्त्व कह्यो, हिरदे बैठे स्वरूप !!

धामधनी आनन्द हो, पावन पूरण नाम !
पदके परे परम पड, सो कहिये परनाम !!

गुरु कंचन गुरु पारस, गुरु चंदन परमान !
तुम सतगुरु दीपक भये, कियो जो आप समान !!

तुम सरूप तुममें स्वरूप, तुम स्वरूप के संग !
भेद तुम्हारो को लाखे, ब्रह्मानन्द रस रंग !!

तुम केवट भानु वा देशके, देउ चक्षु आप समान !
दृष्टि तुम्हारी क्यों रहे, संशय तिमिर अज्ञान !!

जेहि पड नारायण भजे, ब्रह्मा विष्णु महेश !
महाविष्णु वांछित सदा, मोहिं पहुँचाओ वा देश !!

काल कर्म भाव दुःख से, तुम्हीं छुडावन हार !
परमहंस पड देत हो, क्षर अक्षर के पार !!

क्षर अक्षर के पार है, अक्षरातीत आधार !
बिना सन्बन्ध न पाइये, कोटिन करे आचार !!

वेड थके ब्रह्मा थके, थकी गये शेष महेश !
गीताको जहां गम नहीं, वह सतगुरु को देश !!

चाँद सूरज को गम नहीं, नहिं पावकको काम !
पहुंचे सो आवे नहीं, सोई मुकुन्द निजधाम !!

श्री प्राणनाथ निज मूलपति, श्री मेहेराज सुनाम !
तेजकुंवरी श्यामा युगल, पल पल करूं परनाम !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
परणाम

चतुर्थ प्रहरका उठापन

सब सैयां पोहोर पीछल, तोले तीसरी भोम आवें चल !
मन्दिर आइयां सैयां जब, खुले द्वार दर्शन पाये सब !!

तब आये सबै सुखपाल, श्यामाजी बैठें संग लाल !
दोय दोय सैयां सब संग, मिल बैठ करें कै रंग !!

सुखपाल चलावें मन, ज्यों चाहिये जैसा जिन !
या जमुनाजी या तलावें, आये खेले जो मनके भावें !!

श्री राज श्यामाजी के डेरे, सुखपाल उतारे सब नेरे !
जुत्थ जुदे जुदे वन खेलें, खेल नये नये रंग रेलें !!

तब लग खेलें साथ सब, दिन घड़ी दोय पिछला जब !
सैयां मिलाकर पीउ पासे आवें, झीलनेकी बात चलावें !!

श्री राज श्यामाजी उठकर, उतारे हैं वस्तर !
पेहेनें वस्तर जो झीलन, राज श्यामाजी सैयां सबन !!

इत एक घडीलों झीलें, जल क्रीडा कै रंग खेले !
बाकी दिन रह्यो घड़ी एक, तामें सिनगार कियो विवेक !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

बीडी

पीया बीडी लई जिन हाथसों, शोभित पतली अंगूरी !
तिन बीच जोत नंगनकी, अति झलकत है मुंदरी !!

बीडी मुखमें मोरत, सुन्दर हरवटी हंसत !
शोभा इन मुख क्यों कहूं, जो बीचमें बात करत !!

एक लालक तम्बोलकी, क्यों कहूं अधुर दोऊ लाल !
दन्त शोभित मुख मोरत, खूबी ना इन मिसाल !!

लाल उज्वल दोऊ रंग लिये, बीडी लेत मुख अंगूरी नरम !
नेंक मुख मूंदे बोलत, अति सुन्दर मुख शरम !!

नेंक खोले अधुर मुख बोलत, करें प्यारी बातें कर प्यार !
सो सुख देत आसिककों, जिनको नहीं सुमार !!

सिनगार करें देहेलानमें, आरोगे और मन्दिर !
इतही दीदार नूरको, दिन पौढ़े पलंग अन्दर !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

4/06/2010

द्वितीय प्रहरका राजभोग

सैयां केतिक वनमें जावें, शाक पान मेवा सब ल्यावें !
घड़ी चार खेल तित करें, दिन पहोर चढ़ते आवें घरे !!

ये सब इच्छासों मंगावे, पर सखियों को सेवा भावे !
सैयां सेवा करन बेल ल्यावें, लेवें एक दूजी पी छिनावें !!

निकसते दाहिनी तरफ जो ठौर, सैयां आये बैठे चढ़ते दिन पोहोर !
मिलावा हॉट दिवालोंके आगे, सैयां पान बीडी वालने लागें !!

मसाला सम्हार सम्हार के लेवें, सखी एक दूजीको देवें !
डेढ़ पहोर चढ़ते दिन, बीडी वाली सैंयां सबन !!

बीडियोंकी छाब लेकर, धरीं पलंग टेल चौकी पर !
श्री राज बैठे बातां करें, श्री श्यामाजी चित्त धरें !!

सैयां परस पर करें हांस, लेवें धनीजी विविध विलास !
घड़ी दो एक तापर भई, लाडबाई आय यों कही !!

श्री धनीजीकी आज्ञा पाऊं, तो या समय रसोई ले आऊं !
श्री धनीजीयें आज्ञा करी, सैयां चौकी आन आगे धरी !!

सैयां दोय चाकले ल्याई, सो तो दोनों दिये बिछाई !
श्री राज उतारे वस्तर, पेहेनी पिछौरी कमर पर !!

श्री राज चाकले आये, श्री श्यामाजी संग सुहाये !
श्री राज पखाले हाथ, श्री श्यामाजी भी साथ !!

सैयां दौड़ दौड़ के जावें, आरोगनकी वसतां ल्यावें !
मेवा अन्न ने शाक मिठाई, कै विध सामग्री ले आई !!

एक ले चली साक कटौरी, तापै छीन ले चली दूसरी !
तिनथें झोंट ले चली तीसरी, चौथी वापै भी ले दौरी !!

जो कदी छीन लेत है जिनपें, पर रोष न काहूँ किनपें !
इतथें जो फिर कर गैयां, तिन और कटोरी जाये लियां !!

यों एक एक पे लेवें, हेत एक दूजीको देवें !
सब मंदिरों करे झनकार, स्वर उठत मधुर मनुहार !!

सैयां दौड़ात हैं सामसामी, शब्द रह्यो सबों ठौर जामी !
कै स्वर उठत भूषण, पडछंदे पड़े स्वर तिन !!

कै विध उठत मीठी बानी, मुख वरणी न जाय वखानी !
इन समाई की जो आवाज, शोभा धाममें रही विराज !!

दूध दधि ल्याई लाडबाई, सो तो लियो मनके भाई !
सब खेलें हांसी करें, आये आये धनीजीके आगे धरें !!

या समै दौड़त भूषण बाजे, पडछन्दे भोम सब गाजे !
झारी लेकर चुल्लू कराई, मुख हाथ रूमाल पुछाई !!

श्री श्यामाजी चुल्लू करी, दोय बीडी दो मुखमें धरी !
श्रीराज उठि बैठे सिंघासन, संग श्यामाजी उठे ततछिन !!

दोय आसन जोड़े आये, सैंया चोकी चाकले उठाये !
सैयां तले आरोगने गैयां, आरोग आये पान बीडी लियां !!

सेज्या आये श्री जुगल किशोर, तब दिन हुआ दो पहोर !

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

बाल भोग

आवोजी मन मोहन प्यारे, सुख सबों अंग दीजे !
कीजे कृपा पीया जानके अपनी, भोजन आज यहां कीजे !!

हंसिकर मन्दिर मांहीं पधारे, उष्णोदक नहवराये !
नवल किशोर किशोरी सुन्दर, आसन ऊपर सुहाये !!

चोवा चन्दन अतर अरगजा, केशर कम कम ल्याये !
चर्चे रूप युगल रस भीने, वनिता चाहूं ओर गाये !!

सकल पाक बहु व्यंजन अथाने, मेवा मधुर मिठाई !
षटरस स्वाद रसोई रुचिके, थाल संजोय सखी ल्याई !!

रसिक राज सुन्दरवर श्यामा, आरोगे रूचि कीजे !
श्री जमुना जल कनक कचोले, प्रीतम प्यारे पीजे !!

करके भोजन उठे हैं अचायके, सेज्या ऊपर धनी आये !
कपूर कस्तूरी सुवासकी बीडी, आरोगे मन भाये !!

नाना रंग प्रेम रस विलसत सुन्दर सब सुख दीजे !
नागर नवल नागरी श्रीमहामति, नेह नवरंग रस भीजे !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

सिनगार आरती

सांभाल सैंयर मेरी बात, प्राणनाथ पीव विलसिये !
आपण कीजे मंगलचार, आरती उमंग भर कीजिये !!

राजित जुगल किशोर, सिंहासन कंचन मणि !
अति सुन्दर कंचन थाल, दीपक जोत राजित घणी !!

इन्द्रावती उछारंग, आरती करे अखंड धणी !
बार हजार सखी संग, शोभा सही कहुं तेह तणी !!

बाजत ताल मृदंग, गान करे सखी सहु मली !
भूषण करे झलकार, सुरता पहोंची मन रली !!

एवी आरती अखंड स्वरूप, निरखी हरखि गुण गाइये !
श्री महामति जुगल स्वरूप, निरखि निरखि सुख पाइये !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम  

4/05/2010

दाहिनी तरफका मन्दिर

दाहिनी तरफ दूजा जो मन्दिर, आय बैठे ताके अन्दर !
नीला ने पीला रंग, ताकी उठत कै तरंग !!

दोऊ रंगोंकी उठत झांई, इन मन्दिर दिवालोंके तांई !
पैठते दाहिने हाथ जो जाहीं, सेज्या है या मन्दिर माहीं !!

कै जिनस जडाव सिंघासन, राजश्यामजीके दोऊ आसन !
झरोखे को पीठ देवें, बैठे द्वार सनमुख लेवें !!

संग सखियां केतिक विराजे, या समय श्रीमंडल बाजे !
नवरंगबाई जो बजावें, मुख वाणी रसीली गावें !!

इत बाजत बेन रसाल, बेनबाई गावे गुणलाल !
सैयां एक निकसे एक पैठें, एक आवें उठें एक बैठें !!

इन समे भगवानजी इत, दरसनको आवें नित !
झरोखे सामी नजर करे, परनाम करके पीछे फिरे !!

इत और ना दूजा कोई, स्वरूप एक है लीला दोई !
भगवानजी खेलत बाल चरित्र, आप अपनी इच्छासों प्राकृत !!

कोटि ब्रह्माण्ड नजरोंमें आवें, खिनमें देखके पलमें उड़ावें !
और ये तो लीला किशोर, सैयां सुख लेवें अति जोर !!

ये लीला सुख केता कहूं, याको पार परमान न लहूं !!

इत खेलत जुत्थ सैयन, सदा आनन्द इन वतन !
मिने राज श्यामाजी दोय, सुख याही आतम सब कोय !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
परणाम

बीडी-(पान)

आरोग्या रस रूप जुगल धनी, बीड़ी तो सुन्दर लीधी रे !!

कर सिनगार सिंहासन ऊपर, सिनगार आरती कीधी रे !!

चहुं ओर व्रज वनिताओ गावे, मोहनना मन मोहे रे !!

आज हमारे घर आनन्द उच्छव, दीप दीवाली सोहे रे !!

आज रंगनी रेल वही, मारो वालोजी मन्दिर बसिया रे !!

इन्द्रावती पतिरूप जुगल पिया, नवरंगना पीऊ रसिया रे !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

4/01/2010

अचवन

अचवन कीजे कृपा निधान,
सुन्दर अचवन कीजे परम निधान !!

एक सखी जमुना जल ले आई,
दूजी लाई खरिका पान !!

काठो सुपारी चूना लवंग इलायची,
बीडी वाली चतुर सुजान !!

आप पाय सखियनको दीजे,
 छत्रसाल कुरवान !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

प्रात: कालीन भोग

तीजी भोम की जो पडशाला, ठौर बड़े दरवाजे विशाला !
धनी आवत हैं उठ प्रात:, वन सींचत अमृत अघात !!

पसु पक्षियोंके मुजरा लेवें, सुख नज़रों सबोंको देवें !
पीछे बैठे करें सिनगार, सखियां करावें मनुहार !!

श्री श्यामाजी मन्दिर और, रंग आसमानी है वा ठौर !
चार चार सखियां सिनगार करावें !!

श्यामाजी श्री धनीजीके पासे आवें !
शोभा क्योंकर कहूँ या मुख, चित्तमें लिये हॉट हैं सुख !!

चित्त दे दे समारत सेंथी, हेत कर कर वेणी गूंथी !
मीनों मिने सिनगार करावें, एक दूजीको भूषण पहिरावें !!

साथ सिनगार करके आवें, जैसा धनीजीके मन भावें !
सैयां लटकतियाँ करें चाल, ज्यों धनी मन होत रसाल !!

सैयां आवत बोलेन वाणी, संग एक दूजी पे सयानी !
सैयां आवत करें झनकार, पाँव भूषण भोम थमकार !!

झलकतियां रे मलपतियां, रंग रसमें चैन करतियाँ !
कंठ कंठ में बाहों धरतियां, चित्त एक दूजीको हरातियाँ !!

सुंदरियां रे सोभतियाँ, एक दूजीको हांस हंसतियाँ !
कै फलंग दे उछलतियां, कै फूल लता जो फेरतियाँ !!

कै हलके हलके हालतियाँ, कै मालतियाँ मचकतियाँ !
कै आवत हैं ठेलतियाँ, जुत्थ जल लहेरां ज्यों लेवतियाँ !!

कै आवे भमरी फिरतियाँ, एक दूजी पर गिरतियाँ !
कै सीधियाँ सलकतियां, कै विध आवे जो चलतियाँ !!

सखी एक दूजीके आगे, आय आय के चरणों लागे !
इत बड़ा मिलावा होई, जुदी रहे न या समे कोई !!

कोई छज्जों कोई जालियों, कोई महलों कोई मालियों !
इत चार घड़ी लों श्री राज बैठें, मेवा मिठाई आरोगके उठे !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम

चन्दन चढावानी

चलो सखी सुन्दरवरजीने निरखिये,
श्यामाजीने जोई जूई मन हरखिये !!

श्यामाजीना अंग हो सुन्दरसाथ,
निरखि हरषि उमंग न मात !!

सुन्दरसाथ बैठे घेर घेरी,
परिक्रमा तो दीजे फेरी फेरी !!

दीपक रंग रे सिंहासन,
छत्री और डांडे झालर शोभा अतिघन !!

तापर कंचन कलश जो होई,
झलहल जोती करी रहे सोई !!

ये रे सिंहासन जोति न मावें,
सखियां तो सनमुख वाणी गावें !!

श्री मंडल नवरंग बईजीने हाथ,
वेनबाई वेन बजावे तिन साथ !!

झरमरबाई झरमरिया जो बजावें,
तानबाई ताननियां जो मिलावे !!

सेनबाई स्वर पुरावे तिन संग,
मनमें तो धरे अति उछरंग !!

ये उछरंग कह्यो न जावें,
सखियां तो प्रेम सहित वाणी गावें !!

श्री चन्दन पुष्प वाहू विध राजे,
सुगंध सर्वे मारा वालाजीने छाजे !!

श्री पियाजीने पूजन इन विध कीजे,
पूरण ब्रह्मजीने पूजन इन विध कीजे !!

श्री श्यामाजीने पूजन इन विध कीजे,
फेर फेर मूल स्वरूप चित्तमें लीजे !!

जो कोई वासना इन घर,
मूला स्वरूपसे न काढें नजर !!

नहीं कोई सुख इन समान,
अंगना तो कोटि बेर कुरवान !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
परणाम

झीलना

मारा वालाजी चलो जमुना जल झीलिये !! टेक !!
पाट घाट की देहरी में, जहाँ रामत कीजे राज !
रतन जड़ित के मोहोल में, कीजे रंग विलास !!
आप अकेले हूजिये, संग श्यामाजी साथ !
हमहुं बारे हजार मिलके, झीलें तुम्हारे पास !!
कुंज वनके रेतीमें, पीया चलो दौडिये जाय !
जो जाको छुई लेत हैं, सो ताके हाथ बिकाय !!
पीतांबर कटी काछनी काछे, सीस मुकुट लटकाये !
हेम कसबकी ओढनी ओढ़े, झांझरी घुंघरी घमकाये !!
फूलबाग और नूरबाग में, चलो पीया बैठिये जाय !
लहरी आवें सुगंधकी, बास रही माहकाय !!
बड़े बन और लाल चबूतरा, चलो बैठिये जाय !
पशु पक्षी मुजरेको आवें, नये नये खेल दिखाय !!
रसिक राज श्यामाजीके आगे, सखियां निरत कराय !
जापर चितवत हेतसों, देखत नयन सिराय !!
हंसिके राज खुशी भये, पहराये वनमाल !
सखी साकुंडल अरज करत हैं, बलि बलि राजकुमार !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
परणाम

श्री राजजी की स्वरुप

कोटि कोटि दण्डवत करूँ, कोटान कोट करूं परणाम !
कोटि कोटि विन्ती करूं, मेरे सुन्दरवर श्यामाजीवर श्याम !!
श्री राज श्री ठकुराणीजी प्रथम भोममें विराजमान भये ! तहाँ कंचन रंगको सिंहासन, तिनके छ: पाये छ: डांडे ! एक एक डांडेमें दश दश रंग, जवेरोंके झलकत हैं ! दो छत्री दो स्वरूपोंके ऊपर, दो फूल लाल माणिकके कमल के-से, नीलवी की पांखडी ! छत्रीके चारों तरफों जवेरोंकी झालर ! छ: डाडों पर छ: कलश ! दो कलश दोऊ छत्रियोंके ऊपर ! ये आठों कलश हेमके, उतरती कांगरी ! पशमी बिछौना, एक गादी दोय चाकले, तापर पांच तकिये ! श्री राज श्री ठकुराणीजी दो चाकले पर विराजमान भए ! कई चाकले चित्रकारी ! तापर बैठे श्री जुगल बिहारी ! दोऊ स्वरूप चित्तमें लीजे ! फेर फेर आत्माको दीजे ! आत्मासे न्यारे न कीजे अधछिन, फेर फेर कीजे दरसन, पहिले अंगूरी नख चरन, मस्तकलों कीजे वर्णन ! सब अंग वस्तर भूषण, शोभा जाने आत्माके लगन ! सुन्दर श्री ठकुराणीजीको सिनगार, सेंदुरिया रंग जडावकी साड़ी, श्याम रंग जडावकी कंचुकी, नीली लाहिको चरणीया ! श्री राजजीको सिनगार, सेंदुरियां रंग जडावको चीरा, आसमानी रंग जडावकी पिछौरी ! नीलो न पीलो बीचके रंगको पटुका, केसरिया रंग जडावकी ईजार, श्वेत रंग जडावको जामा ! श्री जुगल स्वरूपको मूल वागो, अद्वैतकी लाठी हाथमें लेयके, सब साथको परणाम !!  

आनन्द मंगल श्रीधाम धनीजीकी जय,
श्रीयुगल किशोरकी जय,
श्रीवृन्दावन चंद्रजीकी  जय, 
श्रीरासके रामैयाकी जय, 
श्रीहुकुमके  स्वरूपकी जय,
धनी श्रीदेवचन्द्रजीकी जय, 
श्रीजियावरजीकी साहेबजीकी जय,
श्री बाईजीराजजीकी जय,
श्रीमहाराजा छात्रसालजीकी जय,
श्री सुन्दरसाथजीकी जय,
श्रीसुन्दरसाथ जियावरजी साहेबजीके चरणारविन्दमें हेतसों चित्त दीजिये  !! परणाम !!   
श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
परणाम

अथ सातों वारोंकी परिक्रमा

रविवार-१    
जुगल स्वारूप  रूप छबि छाजे,
सिंहासनके ऊपर विराजे !!
नाचत देत फेर आवत फेरी,
हंसी हंसी लालन मुख तन हेरी !!
गावत गीत बजावत बाजे,
जमुना तट वंशी धुनी गाजे !!
फूले फूल फूल लई आवें,
गुहि गुहि हार पियाको पहिरावें !!
देत परिक्रमा कर्म सब छूटे,
यह सुख पंचम निशदिन लुटे !!

सोमवार-२
पूरण ब्रह्म सच्चिदानन्द रूप,
 संग श्यामाजी सोहे अनूप !!
चारों चरण सुन्दर सुखदाई,
 भूषणकी शोभा मुख वरनी न जाई !!
झांझरी घुंघरी कांबी कडला अलेखे,
 अनवट बिछुवा श्री श्यामजी विशेखे !!
निलो है चरनिया केसरी इजार,
श्वेत दावन झांई करे झलकार !!
चोली श्याम जादव साड़ी सेंदुरिया रंग राजे,
हैयड़े पर हार शोभा आधिक विराजे !!
जरी जामा श्वेत जडाव अंग सोहे,
नीलो पीलो पटुका देखत मन मोहे !!
जामा पर चादर रंग आसमानी,
छेडले किनार बेली जाय न बखानी !!
जरी पाग सेंदुरिया जगमग जोत,
राखडी कलंगी कही जाय न उद्योत !!
शब्दातीत पीया शोभा है अपार,
श्री महामति अंगना जाए बलिहार !!

मंगलवार-३  
धामधनी श्री कृष्ण हमारे,
परम निधान परम रूप प्यारे !!
महाराजा मंगलरूप राजे,
श्याम श्यामजी दोऊ अनूप विराजे !!
पूरण अक्षर पद से न्यारे,
सोई जियावर धनीजी हमारे !!
प्रगटे पीया निज अदभुत सोई,
उपमा पार पावे नहीं कोई !!
परमानन्द जोड़ी सुखकारी,
अंगना पीया पर वारी वारी वारी !!

बुधवार-४
परम सुभग आनन्द गुण  गाइए,
नवल किशोर निरखि सुख पाइये !!
धाम श्याम जीय मंगलकारी,
संग श्यामाजी दुलहिन  पीया प्यारी !!
कुंज निकुंज मध्य क्रीडत कोहै,
ललित मनोहर सुन्दर सोहै !!
करत केल जमुना तट नेरे,
परम विचित्र जियावर मेरे !!
निज है स्वरूप रूप पीया राजे,
श्री महामति मदन कोटि छबि लाजे !!

गुरुवार-५
धाम श्याम श्यामाजी संग प्यारी,
ब्रह्मानन्द लीला निज न्यारी !!
सात घात जमुना जल राजे,
झीलत जुगल किशोर विराजे !!
सघन कुंज मध्य चातक बोले,
क्रीडत लाल लाडिली डोले !!
ताल पाल मध्य मोहोल सुहाये,
खेलन प्यारो प्यारी आये !!
लीला नित्य विहार स्वरूप पर,
भई श्री महामति कुरवान निरखि छबि !!

शुक्रवार-६
प्रथम भोम  शोभा अति भारी,
बैठे सिंहासन श्री जुगल विहारी !!
सिंहासन कंचन मणि सोहे,
निरखि हरखी सखियां मन मोहे !!
सखियां सर्वे शोभा अति सुन्दर,
चौंसठ थंभ तकियोंके अन्दर !!
बस्तर भूषण तेज अति जोर,
ता मध्य बैठे श्री जुगल किशोर !!
जुगल किशोर शोभा किन विध गाइये,
श्री महामति जुगल पर वारी वारी जाइए !!

शनिवार-७
मूल स्वरूप किशोर किशोरी,
निरखी सखी सच्चिदानन्द जोरी !!
भोम तलेकी निरखी छबि न्यारी,
सोहें सिंहासन प्यारो प्यारी !!
श्वेत सेंदुर केसर आसमानी,
श्याम नीलो पीलो वस्त्र जामी !!
देखत खेल सनमुख सखी सारी,
निरखि सिनगार शोभा अति भारी !!
ब्रह्मानन्द लीला निज न्यारी,
निरखि श्री महामति नवरंग वारी !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
अर्जुन राज
प्रणाम

मंगल आरती

सुखको निधान, जय जय सुखको निधान !
मंगल आरती सुख को निधान !!

उठि बैठे सुख सेज्या श्री राज !
संग अर्धांग अली लिये लाज !!

रैनी जगे रग मग दोउ नैना !
बोलत बोल मधुर मुख बैन !!

निरखि निरखि हरशें ब्रह्मसृष्टि !
जुगल पियाजीसों जोड़े दृष्टि !!

उठि बैठे दोऊ सेज्या सुखदाई !
आरती साजी इन्द्रावती ल्याई !!

आरती वारती सखियां सर्वांग !
लेत वारने निज नवरंग !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
अर्जुन राज
प्रणाम  

परत:कालीन उठापन

रैनिकी उनीदी श्याम पीउ पासे आइयां,
पीउ पासे आइयां प्रीतम पासे आइयां !
नैन अरूण सोहे राते रंग भीने,
पिउ प्यारी मन्द मन्द मुस्काइयां !! १ !!

अतलस गेंदुवा सेत निहाली,
जादो लगे पीया शाल ओढाइयां !
लटपटी पाग छीटे बन्ध सोहें,
रंग सेज्या दोऊ लाल सोहाइयां !! २ !!

अंगसों अंग जोड़े दोऊ मन भाइयां,
अरस परस कर कंठ लपटाइयां !
महारंग रसभीने रसिक जुगल पीया,
निरखी निरखी सखियां सुख पाइयां !! ३ !!

चंदनकी चौकी डारौं बैठो प्यारे अंगना,
लवंगकी दातौन जल झारी भरी ल्याइयां !
इन्द्रावती पति रूप जुगल धनी,
निज नवरंग निरखी बलि जाइयां !! ४ !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
अर्जुन राज
परणाम

प्रभाती-२

जागिये श्री प्राणनाथ, प्रात: भयो प्यारे !! टेक !!

पूरण दिश उदय अरूण, सखियाँ सब ठाढ़ी शरण !
पक्षी उडी चले चरण, जागिए दुलारे !!

बैठे उठि नाथ सेज, अंग रंग सकल तेज !
झलकत छबि रेजारेज, भूषण संभारे !!

गौर लखी मुखारविन्द, विहंसत आनन्द कन्द !
बोलत स्वर मंद मंद, नेत्र तेज तारे !!

सोहत भुज बाजु बन्ध, कंठ हार सर प्रबन्ध !
वस्त्र छबि तड़ित मंद, अंग संग सारे !!

गावत जेहि अगम निगम, पावत नहिं सुर नर गम !
आये धरी देह सुगम, चौदे भवन तारे !!

ज्ञानदास निरखि वदन, लाजत छबि कोटि मदन !
आये सोई नन्द सदन, चरणन बलिहारे !!

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
अर्जुन राज
परणाम

प्रभाती-१

उठि प्रभात निरखिये, मुख प्राणनाथ प्यारे !! टेक !!

सुन्दर विशाल नैन, बोलत अति मधुर बैन !
चितवन मन मोहि लेट, मोहनी-सी डारे !!

कोमल अति अंग विशाल, हाथ पाँव कटी रसाल !
अंबुज मुख निरखि दृगन, तन मन धन वाले !!

मुसकत छबि लसत दसन, सोहत अंग तड़ित वसन !
कलंगी शिर गोस पेच, बरनत कवी हरे !!

व्रज और रमाये रास, जागनी को करी प्रकाश !
वय किशोर निरखि जुगल , ज्ञानदास धारे !!


श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
अर्जुन राज
परणाम