4/06/2010

द्वितीय प्रहरका राजभोग

सैयां केतिक वनमें जावें, शाक पान मेवा सब ल्यावें !
घड़ी चार खेल तित करें, दिन पहोर चढ़ते आवें घरे !!

ये सब इच्छासों मंगावे, पर सखियों को सेवा भावे !
सैयां सेवा करन बेल ल्यावें, लेवें एक दूजी पी छिनावें !!

निकसते दाहिनी तरफ जो ठौर, सैयां आये बैठे चढ़ते दिन पोहोर !
मिलावा हॉट दिवालोंके आगे, सैयां पान बीडी वालने लागें !!

मसाला सम्हार सम्हार के लेवें, सखी एक दूजीको देवें !
डेढ़ पहोर चढ़ते दिन, बीडी वाली सैंयां सबन !!

बीडियोंकी छाब लेकर, धरीं पलंग टेल चौकी पर !
श्री राज बैठे बातां करें, श्री श्यामाजी चित्त धरें !!

सैयां परस पर करें हांस, लेवें धनीजी विविध विलास !
घड़ी दो एक तापर भई, लाडबाई आय यों कही !!

श्री धनीजीकी आज्ञा पाऊं, तो या समय रसोई ले आऊं !
श्री धनीजीयें आज्ञा करी, सैयां चौकी आन आगे धरी !!

सैयां दोय चाकले ल्याई, सो तो दोनों दिये बिछाई !
श्री राज उतारे वस्तर, पेहेनी पिछौरी कमर पर !!

श्री राज चाकले आये, श्री श्यामाजी संग सुहाये !
श्री राज पखाले हाथ, श्री श्यामाजी भी साथ !!

सैयां दौड़ दौड़ के जावें, आरोगनकी वसतां ल्यावें !
मेवा अन्न ने शाक मिठाई, कै विध सामग्री ले आई !!

एक ले चली साक कटौरी, तापै छीन ले चली दूसरी !
तिनथें झोंट ले चली तीसरी, चौथी वापै भी ले दौरी !!

जो कदी छीन लेत है जिनपें, पर रोष न काहूँ किनपें !
इतथें जो फिर कर गैयां, तिन और कटोरी जाये लियां !!

यों एक एक पे लेवें, हेत एक दूजीको देवें !
सब मंदिरों करे झनकार, स्वर उठत मधुर मनुहार !!

सैयां दौड़ात हैं सामसामी, शब्द रह्यो सबों ठौर जामी !
कै स्वर उठत भूषण, पडछंदे पड़े स्वर तिन !!

कै विध उठत मीठी बानी, मुख वरणी न जाय वखानी !
इन समाई की जो आवाज, शोभा धाममें रही विराज !!

दूध दधि ल्याई लाडबाई, सो तो लियो मनके भाई !
सब खेलें हांसी करें, आये आये धनीजीके आगे धरें !!

या समै दौड़त भूषण बाजे, पडछन्दे भोम सब गाजे !
झारी लेकर चुल्लू कराई, मुख हाथ रूमाल पुछाई !!

श्री श्यामाजी चुल्लू करी, दोय बीडी दो मुखमें धरी !
श्रीराज उठि बैठे सिंघासन, संग श्यामाजी उठे ततछिन !!

दोय आसन जोड़े आये, सैंया चोकी चाकले उठाये !
सैयां तले आरोगने गैयां, आरोग आये पान बीडी लियां !!

सेज्या आये श्री जुगल किशोर, तब दिन हुआ दो पहोर !

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम