4/01/2010

प्रभाती-१

उठि प्रभात निरखिये, मुख प्राणनाथ प्यारे !! टेक !!

सुन्दर विशाल नैन, बोलत अति मधुर बैन !
चितवन मन मोहि लेट, मोहनी-सी डारे !!

कोमल अति अंग विशाल, हाथ पाँव कटी रसाल !
अंबुज मुख निरखि दृगन, तन मन धन वाले !!

मुसकत छबि लसत दसन, सोहत अंग तड़ित वसन !
कलंगी शिर गोस पेच, बरनत कवी हरे !!

व्रज और रमाये रास, जागनी को करी प्रकाश !
वय किशोर निरखि जुगल , ज्ञानदास धारे !!


श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
अर्जुन राज
परणाम