स्तुति
वन्दौं सतगुरु चरनको, करूं प्रेम परनाम !अशुभ हरण मंगल करन, श्री देवचन्द्रजी नाम !!
देवचन्द्रजीको दरश दियो, जो है पूरण रूप !
तारतमको तत्त्व कह्यो, हिरदे बैठे स्वरूप !!
धामधनी आनन्द हो, पावन पूरण नाम !
पदके परे परम पड, सो कहिये परनाम !!
गुरु कंचन गुरु पारस, गुरु चंदन परमान !
तुम सतगुरु दीपक भये, कियो जो आप समान !!
तुम सरूप तुममें स्वरूप, तुम स्वरूप के संग !
भेद तुम्हारो को लाखे, ब्रह्मानन्द रस रंग !!
तुम केवट भानु वा देशके, देउ चक्षु आप समान !
दृष्टि तुम्हारी क्यों रहे, संशय तिमिर अज्ञान !!
जेहि पड नारायण भजे, ब्रह्मा विष्णु महेश !
महाविष्णु वांछित सदा, मोहिं पहुँचाओ वा देश !!
काल कर्म भाव दुःख से, तुम्हीं छुडावन हार !
परमहंस पड देत हो, क्षर अक्षर के पार !!
क्षर अक्षर के पार है, अक्षरातीत आधार !
बिना सन्बन्ध न पाइये, कोटिन करे आचार !!
वेड थके ब्रह्मा थके, थकी गये शेष महेश !
गीताको जहां गम नहीं, वह सतगुरु को देश !!
चाँद सूरज को गम नहीं, नहिं पावकको काम !
पहुंचे सो आवे नहीं, सोई मुकुन्द निजधाम !!
श्री प्राणनाथ निज मूलपति, श्री मेहेराज सुनाम !
तेजकुंवरी श्यामा युगल, पल पल करूं परनाम !!
श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
परणाम