2/28/2010

सुखी जीवन

मानव के सभी प्रयास, उसकी भाग दौड़ उद्देश्यहीन नहीं । मानव की तीन महान इच्छाएं कही जाती है । वे हैं: अधिक कालतक जीने की इच्छा, दुखों से निवृति तथा सतत आनन्द सुख व आनन्द की कल्पना में अथवा उसकी खोज में ही प्रत्येक का जीवन व्यतीत हो रहा है । तो भी आज हमें ऐसा लगता है जैसे हम स्वयं से शांत नहीं, पूर्णानन्द हम से कोसों दूर है । ऐसा क्यों है ? हम या तो सुखी जीवन के अर्थ को नहीं समझते अथवा हमारा प्रयास उल्टा दिशा में है और उद्देश्य खिन और है ।
हम धर्म गोष्ठियों में, वास्तविक सुख क्या है ? कहाँ है ? कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? इत्यादि प्रश्नों पर विचार विनिमय करते हैं तथा अपने प्रिय लक्ष्य तक पहुँचने का प्रयास करते हैं । गोष्ठियों में व्यक्तिगत योग्यता तथा अनुभवों को कसौटी पर कास कर हम मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं ताकि हमारा प्रयास व्यर्थ न हो, हम पथभ्रष्ट न हो जाएँ तथा अपने वांछित उद्देश्य-निरोग तथा सुखी जीवन-व्यातीत करते हुए सतत आनन्द प्राप्त कर सकें । उस आनन्द को जो आत्मा की प्यास है, जो शाश्वत है, जो शारीर नाश होने के पश्चात् भी हम से दूर न हो, पा सकें । इस आत्मा के आनन्द को केवल मानव शरीर ही प् सकता है । इसी जीवन में पाना है, क्योंकि शरीर का क्या भरोसा ! वास्तव में आनन्द तो हमारे स्वयं में ही है । केवल स्वयं को थोडा टटोलने की आवश्यकता है । जैसे बालपन से बढ़ते हुए मानव की शक्तियां जागरुक होती जाती हैं, इसी प्रकार हमें अपनी सुप्त शक्तियों को जागरुक करके सतत आनन्द को पाना है । प्राकृतिक शक्तियों को समझते हुए नियमित जीवन यापन ही से आनन्द प्राप्त हो सकता है , एसा हमारा विश्वास है । इसे हम कम से कम प्रयास तथा समय में पा लें यह हमारी इच्छा है । सत्संग में इस पर विवेचन किया जाता है की नियमित जीवन क्या है, जिससे वास्तविक तथा सतत आनन्द प्राप्त हो सके ।
प्रणाम ..............अर्जुन राज


आंशु की तस्वीर:-

आंशु की तस्वीर अगर कोई बना दे तो
सारी जिन्दगी मैं गुलाम बन जाता
मेरी लुटी तकदीर अगर कोई बना दे तो
सारी जिन्दगी मैं उसे सजा दे ता ।
ए दुनियां जिसे बाबरा कहता है
जो मौत का इन्तजार करता है
पर मेरे आत्मा को सब क्या कहे
वो तो इंतजार पे इंतजार करता है ।
आज जिसे तुम याद करते हो
कल तुम्हे वो भूल जाएगा
अगर वो तुम्हे याद रखेगा
तो तू खुदको ही भूल जायेगा ।
जब तक रहोगे नींद में सोके
आँखों में सपना ही दिखेगा
जब तुम आँखें खोल के देखोगे
तब ही तुम्हे कोई अपनासा लगेगा ।
प्रणाम ..................अर्जुन राज

श्री ५ नवतनपुरी धाममें युगल शमीवृक्ष:-

इस एकान्त बगीचेमें पहले एक ही शमी (खिजडा) का वृक्ष था, निजानन्द स्वामी सद्गुरु श्रीदेवचन्द्रजी महाराज गांगजीभाईका घर छोड़कर वि,सं १६८७ कार्तिक शुक्ल त्रयोदशीके दिन प्रात: काल दस घड़ी दिन चढ़ते यहाँ आकर उसी शमी वृक्षके नीचे बैठे गये और छोटा-सा श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर अपने हाथोंसे थम्भोंमें बन्धन बाँधकर बनाया और आद्यधर्मपीठकी स्थापना की एवं इसीमें रहकर पूजा-पाठ- चर्चा करने लगे, श्रोताओंकी संख्या दिन प्रतिदिन बढती गई, नगरके चौधरी -वैष्णव लोग आपकी कथा श्रवण हेतु आने लगे, जो पहले कानजी भट्टकी कथामें जाया करते थे, सद्गुरु महाराजके यहाँ आनेसे सभी दैवत यहाँ आ गई, जिससे ब्रह्म कथाका पूर खुक प्रवाहित होने लगा,
ग्रीष्म ऋतुका समय आया, श्रोतागण प्रकृतिके नियमानुसार सूर्य देव के तापसे पीड़ित होने लगे, यह देख सद्गुरु महाराजने एक दिन प्रात: काल उसी खिजडा वृक्षकी एक टहनी तोड़कर दातौन किया और उसे पौधेकी तरह लगा दिया, सद्गुरु महाराजके तपोबलसे वह थोड़े ही दिनोंमें विशाल वृक्षके रूपमें परिणत हुआ, जिससे सुन्दरसाथको शीतल छाया मिली और आनन्द हुआ ।
ये दोनों वृक्ष आज भी हैं और परमधामकी ब्रह्मसृष्टि सुन्दरसाथको भवरोग निवारण औषधि प्रदान कर रहे हैं,
जिस कन्याका विवाह नहीं हो रहा हो तो वह छ: महीने तक नित्य नियम पूर्वक जल चढ़ाती है तो उसकी शादी योग्य वरके साथ हो जाती है, जामनगरमें यह तथ्य भी प्रसिद्ध हो चूका है ।
इन खिजडा वृक्षोंके चमत्कारकी अनेक कथाएं हैं, जिनका संकलन करना संभव नहीं है, न जाने कितने लोगोंके असाध्य रोग दूर हुए हैं और कितने लोगोंको सन्तानकी प्राप्ति भी हुई है, आस-पासके गाँवोंमें एसे अनेक लोग हैं, जो मिलने पर अपनी सन्तानको दिखाते हुए कहते हैं कि यह श्री ५ नवतनपुरी धामकी प्रसादी है ।
श्री तारतम ज्ञानके उदय होनेसे एवं सद्गुरु महाराजकी तपोभूमि तथा श्री प्राणनाथजीकी जन्मभूमि और मंत्रदीक्षा गुरुद्वार होनेसे इस पवित्र तीर्थका आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व तो है ही, इसके साथ-साथ कई चमत्कारपूर्ण कार्य सिध्द होनेसे इसका भौतिक महत्त्व भी अग्रस्थान पर है । प्रणाम ........................अर्जुन राज

2/27/2010

श्री ५ नवतनपुरी धाममें शमीं वृक्ष:-

नगर सेठ गांगजीभाईका घर छोड़कर निजानन्द स्वामी जब श्री ५ नवतनपुरी धाम पर आये उस समय एक ही शमी वृक्ष था, उसीके पास आपने रहने के लिए एक कुञ्ज कुटीर बनाया और उसी वृक्षसे लगते एक छोटा सा मन्दिर बनाकर पूजा- पाठ ध्यान करना प्रारम्भ किया, वाही मन्दिर कालान्तरमें आज पांचवी भोम युक्त भव्य रूप लेकर देश-विदेशमें फैले प्रणामी समाजको आह्वान कर उनकी भावनाको पवित्र कर रहा है अर्थात साक्षत परमधामका अखण्ड सुख प्रदान कर रहा है जो महाप्रलय तक स्थायी रहकर उसके बाद अखण्ड हो जाएगा, कारण कि परम पुनीत श्री ५ नवतनपुरी धाम सत्स्वरूप (जहाँ ब्रह्मसृष्टिके नाम पर मुक्ति स्थान बताया गया है) से परे अक्षरधाम, उससे भी नौ लाख कोसकी दूरी पर स्थित अक्षरातीत धाम, परमधामका ही प्रतीक स्वरुप है, ब्रह्मसृष्टि - परमधाम मूल मिलावामें स्थित परात्माके जाग्रत होते ही यह नवतनपुरी धाम भी उनकी स्मृति पटलमें अखण्ड हो जाएगा, यहाँ तो ब्रह्मसृष्टियोंको जाग्रत करनेके लिए ही श्री निजानन्द स्वामी सम्पूर्ण परमधामकी सत्ता लेकर इस धराधाम पर उतारे थे । प्रणाम............अर्जुन राज

जीवन सुधर गया

सत्संग में क्या गया, जीवन सुधर गया
बस में था न गुस्सा, जाने किधर गया !
सतगुरु को मनाने गया था, सेवा भावी बनकर
सेवा में यूँ खोया, समय गया कैसे गुजर !
नजारा न देखा जब तक, सत्संग की धारका
देखा जो समाया आँखों में, अब दिल में उतरगया !
यहाँ न तन्हाई, न गम है, बस ख़ुशीयों का मेला है
जो भी गया सत्संग में, समझो अपने घर गया !
यहाँ ज्ञान और भक्ति की, बहती हैं धाराएँ
जिसने भी लगाया गोता, भवबंधन से तर गया !
यहाँ गुरु और शिष्य का, होता अनोखा मिलन
जिसने भी देखा सुना, चकित ही रहगया !
यहाँ परमधाम का नजारा, आकर तो देखो सुन्दरसाथ
परामधाम से नूर ही नूर, मनो जमी पर बिखर गया !!
प्रणाम.......................
रचना अर्जुन राज

2/20/2010

-श्री १०८ और श्री ५ का महत्त्व:-

श्री १०८ का अर्थ होता है-१०८ पक्ष, अत: बड़े तीर्थोंके नामके आगे १०८ पक्षके प्रतीक श्री १०८ लिखा जाता है, मालाके मनके भी इसीके प्रतीक १०८ ही होते हैं, श्री ५ का अर्थ पांच स्वरूपका प्रतीक है, यह श्री १०८ और श्री ५ पुरयोंके नामके आगे लिखा जाता है, धर्माचार्योंके नामके आगे श्री १०८ लिखनेकी परम्परा है, अपने यहाँ तीन पुरियाँ हैं-
१ श्री ५ नवतनपुरी धाम, जामनगर
२-श्री ५ मंगलपुरी धाम, सूरत
३-श्री ५ पद्मावतीपुरी धाम, पन्ना
हम सब ऐसे परम पुनीत तीर्थ धाम को सादर प्रणाम करते हैं । प्रणाम ..........
श्री अर्जुन राज

श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर:-

यहाँ एक खीजड़ा (शमी) का वृक्ष है, जिसके नीचे श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर बनाकर धर्मपीठ सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराजने स्थापित किया, इसी वृक्षके नीचे बैठकर सद्गुरु महाराज कथा- चर्चा किया करते थे, सुन्दरसाथकी संख्या बढती गई, ग्रीष्म ऋतु आई तो एक दिन उसी शमी वृक्षकी टहनी तोड़कर दातौन करके, अर्द्ध भागको पौधेकी तरह लगा दिया, जो थोड़े दिनोंमें काफी विशाल आकारका हो गया वे दोनों शमीके वृक्ष आज दिन तक अपनी बांहरूप शाखाओंसे सुन्दरसाथको आशीर्वाद देते प्रतीत हो रहे है ।
शमी वृक्षको गुजरती भाषामें खीजड़ा कहा जाता है, अत: उन वृक्षोंके वहाँ होनेके कारण जामनगरकी जनता इसे खीजड़ा मंदिरके नामसे जानती है, वास्तवमें यहाँ श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर है, प्रमुख द्वार पर सबसे ऊपर श्री श्री १०८ नवतनपुरी धाम और नीचे कुछ छोटे अक्षरोंमें श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर लिखा है, यह नाम स्वयं सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराजने रखा है, यही कारण है कि उनके बाद जितने भी मन्दिर बने सबका नाम इसी प्रकार रखा गया, इस नाम को परिवर्तन करनेका अधिकार किसीको भी नहीं है, जहाँ पर प्रणामी होंगे वहाँ पर मन्दिरका नाम श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर ही होगा । प्रणाम .................

श्री देवचन्द्रजी महाराज का गादी अभिषेक:-

जहाँ पर परमधामकी साक्षात लीला प्रकट हुई है, उसी स्थानका नाम धर्मपीठ है और वहीं आचार्य गादी हो सकती है, इसी स्थान पर सुन्दरसाथने वि.सं.१६८७ कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी, गुरूवारके दिन प्रात: शुभ बेलामें श्रीदेवचन्द्रजीको उच्च गादी पर बैठाया और नगर सेठ गांगजीभाईने तिलक कर आरती की, जाम लाखाजी (प्रथम) ने शाल ओढ़ाकर आचार्य पदसे विभूषित किया, उसी दिनसे यह स्थान निजानन्द स्वामी श्रीदेवचन्द्रजीके नामसे प्रसिद्ध है, यह परम्परा वर्तमानमें भी चालू है, श्री ५ नवतनपूरी धामके जो भी गादीपति होते हैं उन्हें जाम साहेब(जामनगरके राजाके वंश) तथा यहाँ के पुजारी सर्व प्रथम चादर विध करते हैं, श्री निजानन्द स्वामीने श्री कृष्ण प्रणामी धर्म-निजानन्द सम्प्रदायको प्रकट किया है, अत: यह गादी निजानन्द सम्प्रदाय (श्रीकृष्ण प्रणामी धर्म) की आद्य गादी के नामसे पुकारी जाती है, यह गादी निजानंदाचार्य सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराजकी गादी है ।

निजानन्द स्वामी द्वारा स्थापित इस धर्मपीठके जो भी अधिकारी होते हैं, उन्हें निजानन्द सम्प्रदायाचार्य अथवा श्री कृष्ण प्रणामी धर्माचार्य कहा जाता है, धर्मपीठके अधिकारी परम्परासे सभी परवर्ती धर्माचार्य भी निजानन्द स्वामीके स्थानीय दैवतको प्राप्त होनेके कारण उसी शोभाको धारण किए होते हैं, यहाँ गादीका तात्पर्य गादी स्थानसे है, वह यावत् चन्द्रदिवाकरौ स्थायी होता है, मूढ़ लोग रूई एवं कपड़ा द्वारा बनाई गई गादी मात्रको गादी समझते हैं, यह उनकी अल्पज्ञता है, ऐसी गादीको तो कोई भी व्यक्ति बना सकता है और किसी भी स्थानमें बिछाकर बैठ सकता है, वस्तुत: गादी वह कहलाती है- जिस स्थानको महापुरूषोंने अपनी तपस्या द्वारा अविचल स्थायी किया होता है, जहाँ पर महापुरूष द्वारा आचार्य गादी स्थापित की गई, वहाँ पर "स्थानं न प्रधानं न बलं प्रधानं" की उक्तिके अनुसार स्थान ही प्रधान होता है, अत: वह स्थान " यावत् चन्द्रदिवाकरौ " यथावत पूज्य बना रहेगा, श्री ५ नवतनपूरी धाम की इस पावन भूमि पर साक्षात् परमधामकी अखंड लीला हुई थी, हो रही है और होती रहेगी । प्रणाम ...................

2/19/2010

श्री कृष्ण प्रणामी धर्मका प्रादुर्भाव स्थल:-

तीर्थोंकी महिमाका गान समस्त वेद-पुराण, उपनिषद् और शास्त्रोंमें हुआ है, तीर्थोंमें भी श्री ५ नवतनपुरीधामका महत्त्व विशेषरूपसे है, इस धामकी असीम महत्ताको लघु लेखनी द्वारा आंकना सूर्यको दीपक दिखाने जैसा ही प्रयास है, "तितीर्षु दुस्तरं मोहादुडुपेनास्मि सागरम" वाली महाकवि कालिदासजीकी उक्तिको ही सार्थक बनाने जैसा उपक्रम है, सूर्य सारे विश्वको प्रकाश देता है, यह सर्विदित है, जिस प्रकार उत्तर भारतमें प्रवाहित होनेवाली नदियोंके उद्गम स्थलके रूपमें मानसरोवरकी प्रसिद्ध है, उसी प्रकार श्री कृष्ण प्रणामी धर्मका प्रादुर्भाव स्थल साक्षात श्यामा महारानीके अवतार और श्री राजजीके आवेश स्वरूप निजानन्द स्वामी सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज द्वारा स्थापित आद्यधर्मपीठ श्री ५ नवतनपुरीधाम श्री कृष्ण प्रणामीयोंका एकमात्र केन्द्र स्थान है, यह उक्ति प्रणामी जगतमें प्रसिद्ध है । एसे परम पुनीत श्री ५ नवतनपुरी धाम को हम सदर प्रणाम करते हैं । प्रणाम ................

सर्वोत्तम पुण्य भूमि एवं पवित्र तीर्थ:-


भारत भूमि प्राचीन कालसे ही ऋषि-मुनियों, साधू-सन्तों एवं महापुरूषोंकी तपोभूमि रही है, महापुरूषोंने अपने अवतरणसे न केवल भारत वसुन्धराको पवित्र बनाया है अपितु अपनी ज्ञान-गंगा प्रवाहित करके देशवासियोंके मानस-पटलको भी शुद्ध, सात्विक और पवित्र किया है,

महापुरूष जिस भूमिमें प्रकट होते हैं, या जहां वे समाधिस्थ होते हैं, एसी पुण्य भूमिको तीर्थ कहा जाता है, श्री ५ नवतनपुरी धाममें महामति श्री प्राणनाथजी महाराजका अवतरण हुआ है तथा श्री निजानन्द स्वामी सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज तथा श्री प्राणनाथजिका यह कार्यक्षेत्र रहा है, इसी भूमिमें निजानन्द स्वामी सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज समाधिस्थ हुए हैं, इस दृष्टिसे तीर्थोंकी तीनों विशेषताएं श्री ५ नवतनपुरी धमको प्राप्त है, अत: यह सर्वोत्तम पुण्यभूमि एवं पवित्र तीर्थ मानी गई है । प्रणाम ........................

भागवत श्रवण और श्री कृष्ण दर्शन:-

नवानगर (जामनगर) में श्री श्याम सुन्दरजीके मंदिरमें प्रकाण्ड विद्वान श्री कांजी भट्ट श्रीमद्भागवतकी कथा सुनाया करते थे, श्रीदेवचंद्रजी महाराज भी श्रीमद्भागवतकी कथा श्रवण करने जाने लगे, इस प्रकार चौदह वर्षों तक निष्ठापूर्वक वे श्रीमद्भागवतकी कथा सुनते रहे, इस अवधिमें अनेक शारीरिक विघ्न-बाधायें (रोग-शोक आदि) आने पर भी इनका नित्य नियम नहीं टूटा, वे कथामें सबसे पहले आते और सबके बाद घर जाते थे, निष्ठा पूर्वक किये गये उनके नित्य- नियमने परब्रह्म श्रीकृष्ण परमात्माको भी प्रत्यक्ष होने के लिए विवश कर दिया, जब श्रीमद्भागवत श्रवणका चौदहवाँ वर्ष पूरा हो रहा था, तब विक्रम संवत १६३८ आश्विन कृष्ण चतुर्दशीके दिन श्रीकृष्ण परमात्मा (श्रीराजजी) ने साक्षात दर्शन देकर श्रीतारतम महामंत्र प्रदान किया और कहा-
हे देवचन्द्र ! तुम दिव्य परमधमकी आत्मा हो, तुम्हारा नाम सुन्दरबाई है, परमधाममें तुम्हारी जैसी आत्माओंने दुःख रूप खेल (संसार) देखनेकी इच्छा की थी, तब मैंने तुम सबको इस नश्वर संसारमें भेजा, ये सब आत्माएं नर-नारीके रूपमें इस नश्वर जगतमें आई हुई हैं, अब वे सभी आत्माएं स्वयंको यहींकी (इसीलोककी) समझने लगी हैं, हमारा घर-मकान यही है, अब तुम उन सब आत्माओंको इस तारतम ज्ञान द्वारा जाग्रत करके उस सुदिव्य परमधाममें ले आओ, इस तरह देवचन्द्रजीको आत्मज्ञान कराकर, उन्हें पाताल से परमधामका सम्पूर्ण परिचय करवाते हुए आत्म जागृतिके लिए तारतम ज्ञानका रहस्य समझाकर पूर्णब्रह्म परमात्मा श्री कृष्णजी अंतर्ध्यान हो गये । प्रनामजी ....................... ।

जामनगर आगमन:-

श्री निजानन्द स्वामी सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज भुज नगरमें शास्त्र तथा भक्तिका रहस्य समझाते - आत्मसात करते हुए स्वामी श्री हरिदासजीके पास चार वर्ष तक रहे, जब वे उनसे भी गुरुका गौरव पाने लगे तब उन्हें अच्छा नहीं लगा, फल स्वरूप स्वामी हरिदासजीके अनेक अनुनय-विनय करने पर भी वे वहाँ नहीं रुके और अपने माता-पिताको साथ लेकर जामनगर आ गये, उस समय उनकी अवस्था पच्चीस वर्षकी थी । प्रणाम..........

श्री निजानंद स्वामीका भक्तिभाव:-

स्वामी श्री हरिदासजीका श्री कृष्णभक्तिका भाव देखकर श्री देवचंद्रजी महाराजको उनके प्रति आगाध श्रद्धा हुई और वे उनके पास रहकर भक्तिसाधानामें लगे, शीघ्र ही श्री देवचन्द्रजी महाराज प्रभु भक्तिमें कुछ इस प्रकार लीन हुए की उनकी भक्तिका रंग स्वामी श्री हरिदसको भी प्रभावित करने लगा और वे उन्हें अपना गुरु मानने लगे, आत्मगयानियोंकी यह अवस्था स्वत: ही हो जाती है, जो प्रभुभजनमें तल्लीन होता है उनको सांसारिक मोह मायाँ (मर्यादाएँ) बाँध नहीं पाती है । सादर प्रेम प्रणाम ..............

विचित्र संयोग:-

निजानन्द स्वामी सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज उमरकोटसे चलकर परमात्माकी खोज करते हुए कच्छ पहुंचे और विभिन्न सम्प्रदायोंके साधु- महात्माओंसे मिले, उनकी संगति की, इस प्रकार खोज करते हुए चार वर्ष बीत गए पर मनमें संतोष नहीं हुआ, अत: वे वहांसे चलकर भुजनगर पहुँचे जहाँ उनकी भेंट परम कृपालु श्री कृष्ण भक्त श्री हरिदासजी से हुई, श्री हरिदासजीकी संगति और उनसे निरंतर अपनी जिज्ञासाओंका समाधान पाकर उनके भटकते मनको विश्राम मिला, यह विचित्र संयोग ही था की स्वामी हरिदासजी श्री देवचन्द्रजी महाराजके माता-पिताको सूचना मिली की उनकी आँखोंका तारा उनके पास है, फलत: वे भी वहीं आकर रहने लगे । प्रणाम जी ...........................

परमात्माकी खोजमें गृह त्याग:-

परिवारके धार्मिक वातावरण और सुसंस्कारोंका प्रभाव सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराजके बालक मन पर पड़ना स्वाभाविक ही था, फलत: श्रीमन्निजानंद स्वामी सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज बाल्यकालसे ही सांसारिक सुख, भोगादिसे विरक्त रहा करते थे, सांसारिक कोई भी वास्तु उन्हें अच्छी नहीं लगती थी, संसारके बहुमूल्य रत्नों और वैभवोंकी अपेक्षा उनको मानव जीवनकी सार्थकता कहीं अधिक मूल्यवान दिखाई देने लगी, इस प्रकारकी अन्तर्मुखी वृतिने माता-पिताके लड़-प्यार, सुख- सुविधासे उनको सौलह वर्ष सात माहकी अवस्थामें ही विरक्त कर दिया और वे सब कुछ छोड़कर पूर्णब्रह्म परमात्माकी खोजमें घरसे निकल पड़े । प्रनामजी । प्रनामजी । प्रनामजी ........

श्री देवचंद्रजी महाराजका अवतरण


धर्मप्राण भारतवर्षकी पावन धराकी यह विशेषता रही है की जब-जब यहाँ धर्मकी हनी और अधर्मकी वृद्धि हुई है, तब-तब मानवमात्रके कल्याणार्थ और धर्मकी पुनः स्थापना हेतु महापुरूषोंका अवतरण होता रहा है। श्री कृष्ण परनामी धर्मके आद्य प्रवर्तक सद्गुरु श्री देवचंद्रजी महाराजका जन्म विक्रम संवत १६३८ (१५८७ई) आश्विन शुक्ल चतुर्दशीके दिन तत्कालीन मारवाड़ प्रदेशके उमरकोट ग्राम (वर्त्तमान सिंध प्रदेश) में प्रसिद्ध व्यापारी श्रीमत्तु मेहता और माता कुंवरबाईका जीवन श्री कृष्ण भत्तिमें समर्पित था और वे पूर्ण श्रद्धा भावसे धर्म-अर्चना, पूजा-पाठमें तल्लीन रहते थे, श्री देवचन्द्रजी महाराज ही उनकी वृद्धावस्थाके एकमात्र सहारा थे । प्रनामजी ।

2/17/2010

श्री श्री १०८ नवतनपुरी धाम !!

श्री निजानन्द सम्प्रदाय (श्री कृष्ण परनामी धर्म) के आद्य धर्मपीठ श्री १०८ नवतनपुरी धमकी स्थापना श्री निजानंद सम्प्रदाय आद्य पीठाधीश्वर श्रीमंनिजानंद स्वामी सद्गुरु श्री देवचंद्रजी महाराज द्वारा आजसे लगभग तीन सौ सत्तर वर्ष पूर्व विक्रम संवत १६८७ (१६३० ई) कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी, गुरुवारके दिन मानवमात्र के कल्याण के लिय की गई थी, आपने स्थापना कलसे ही यह धर्मपीठ ब्रह्मात्माओंकी जागनी तथा पूरी दुनियाँको सांसारिक बंधनोंसे मुक्ति दिलाने हेतु पूर्णब्रह परमात्मा श्री कृष्ण (श्री राजजी ) की भक्तिमें तन-मन-धन अर्पण करके क्षण भंगुर, नश्वर मानव जीवनको सार्थक बनानेकी प्रेणाके साथ श्री कृष्ण परनामी धर्मका सन्देश और शिक्षा निरंतर दे रहा है ! प्रणाम !!

दर्शन करने आया हूँ


तेरे चरणों में हे श्याम, दो फूल चढाने आया हूँ !
दर्शन की प्यासी है अखियाँ, दर्शन करने आया हूँ !!

दिदार को आश लिय श्याम, मंदिर तक तेरे आया हूँ !
श्रधाकी थाली में श्याम, प्रेम का फूल सजाया हूँ !!

पिताम्वर रेशम के श्याम, भेट में तेरे लाया हूँ !
दर्शन की प्यासी है अखियाँ, दर्शन करने आया हूँ !!

जबतक तन में प्राण रहे श्याम, करूं सदा तेरी पूजा !
तन छूटे तूही मिले श्याम, और न कोई मिले दूजा !!

दया की सागर हे श्यामाश्याम, सादर शीश झुकता हूँ !
दर्शन की प्यासी है अखियाँ, दर्शन करने आया हूँ !!


रचना श्री अर्जुन राज
श्री ५ नवतनपुरी धाम

2/16/2010

तारतम की धारा

दिल से टुटा हुआ, मन का हो जो हारा

एक पन्ना भी पढ़कर उसको, मिल जाये सहारा

हरेक शब्द में इसके जादू, बन गया मनमीत !

राह दिखाई सतगुरु ने, हमने भी जाना है
शब्दों की हर अक्षर से, खुद को भी पहचाना है
भटकते हुएको राह दिखा दे, सतगुरु की रीत है !


सतगुरु से परमधाम का, मिलता ज्ञान प्रकाश है
विकट समस्या भी हल कर दे, यह सतगुरु के प्रीत है
पढ़ो ध्यान से हर अक्षर, है तारतम गीत संगीत का !


माया सांप ने छीन लिया हो जिलके मन का सुकून
विकारों के जहर से जब काला पड़ जाय खून
उस आत्मा की जोड़ दे पल में धनी से प्रीत
येसी तारतम वाणी से बनाइये इन्द्रियजीत !!

!! प्रणाम !! अर्जुन राज !!







श्री मद्तारतम महाविद्यालय श्री ५ नवतनपूरी धाम


वंदो सतगुरु चरनको, करूँ सो प्रेम प्रणाम !

अशुभ हरण मंगल करण, श्री देव्चान्द्रजी नाम !!

परम पुनीत श्री १०८ श्री ५ नवतनपुरी धाम खिजडा मंदिर ट्रस्ट संचालित श्री मद्तारतम महाविद्यालय में देश देशांतर से शास्त्रोक्त विद्या हासिल करनेके लिए विद्यार्थीयों आते हैं, उन सबको पढ़ने के लिए परम वन्दनीय गुरूजी श्री यमनाथ शास्त्रीजी महाराज का मुख्य भूमिका रहता है, विद्यार्थी जनोको श्री मद्तारतम सागर, परमधाम पट्दर्शन , वीतक, वैराट तथा अन्ने शास्त्रोंका ज्ञान भी प्रदान करते हैं ! इनके साथ-साथ सेवा पूजा मंगल आरती सिनगार आरती, संध्या आरती तथा सयेन आरती अर्थात श्री राजश्यामाजी को पौढ़ावनी जैसा अनेकौं विषय में पारंगत करवाते हैं, तथा ज्ञान, भक्ति, वैराग्य के विषय में भी पारंगत करवाते है ! इन सब में पारंगत होनेके बाद जगद गुरु श्री १०८ कृष्णमणि महाराजजी के आज्ञा के मुताविक वाणी पूर्णाहूति का आयोजन रख्खा जाता है, पूज्य महाराज श्री तथा गुरूजी श्री यमनाथ शास्त्रीजी महाराज आशीर्वचन के साथ वाणी विशारद के पदवी से सम्मानित करते हैं !!

एसे परम पुनीत श्री ५ नवतनपुरी धाम को हम सब सत सत दंडवत प्रणाम करते हैं !!
pranam arjun raj


2/15/2010

श्री ५ नवतनपुरी धाम की महिमा

स्वामी श्री प्राणनाथ जी अपने श्री मुखसे श्री ५ नवतनपुरी धामकी महिमा
इस प्रकार गाते हैं !!

पहेले बीज उदय हुआ, पूरी जहां नौतन !
सब पुरियोमें उत्तम, हुई सो धन धन !! पहेले


मध्ये जे पुरी कहावे, नौतन जेहनुं नाम !
उत्तम चौदे भवनमां, जीहां वलानुं विश्राम !!


एते दिन त्रिलोक में, हुती बुध्द सुपन !
सो बुध्द जी बुध्द जाग्रत ले, प्रगटे पुरी नवतन !!


संकलन श्री अर्जुन राज
श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर




                  पेहेले आप पेहेचनो रे साधो


                  पेहेले आप पेहेचनो रे साधो, पेहेले आप पेहेचनो !

                  बिना आप चीन्हें पार ब्रह्मको, कौन कहे मैं जानो !! १ !!

                  पीछे ढूँढ़ो घर आपनों, तब कौन ठौर ठेहेरानो !

                  जब लग घर पावत नाहीं अपनों, तोलों भटकत फिरत भरमानो !! २ !!

                  पांच तत्व मिल मोहोल रच्यो है, सो अन्त्रीख क्यों अटकानो

                  याके आसपास अटकाव नहीं, तुम जागके संसे भांनो !! ३ !!

                  नींद उडाए जब चीन्होंगे आपको, तब जानोगे मोहोल यों रचानो !

                  तब आपै घर पाओगे अपनों, देखोगे अलख लखनो !! ४ !!

                  बोले चाले पर कोई न पेहेचाने, परखत नहीं परखानो !

                  महामत कहें माहें पार खोजोगे, तब जाए आप ओलखानो !! 5 !!

                  प्रणाम प्रणाम प्रणाम प्रणाम प्रणाम प्रणाम प्रणाम प्रणाम ...............

                  श्री राज्श्यमाजी की जय !! प्रणाम !!


                  सदा आनंद मंगल में रहिये, सदा आनंद मंगल में रहिये !

                  महाप्रसाद और चरणामृत, ये सुख साथ ही में पाइये !! १ !!

                  इश्क सुराही प्रेम का प्याला, अन्दर आतम छकि रहिये !! २ !!

                  तन सोवे रूह निशदिन जगे, धामधानी के चरणों रहिये !! ३ !!

                  अष्ट प्रहर दिन चौंसठ घड़ियाँ, निशदिन पीऊ- पीउ - पीउ कहिये !! ४ !!

                  छ्त्रशाल भजो धाम धनी को, और देवन सों क्या चाहिये !! ५ !!

                  !! प्रणाम प्रणाम प्रणाम प्रणाम प्रणाम !!
                  श्री अर्जुन राज