4/11/2010

अथ अंतर्ध्यान

संवत १७५१ श्रावण कृष्ण त्रितीयाकी रात्रि १४ घड़ी व्यतीत हो जाने पर श्रीजी धाम पधारे थे. चतुर्थीको दिन भर उनका अन्तिम दर्शनकर पंचमीको उनकी देहको श्री गुमटजीमें पधराया गया. इसलिए त्रितीयाके दिन उपवास रखकर सायं अल्पाहार करना चाहिए. चतुर्थिको दोनों समय उपवास रखना चाहिए. पंचमीको आरती तथा थालभोग पश्चात भोजन ग्रहण करना चाहिए व उपवास रखना असंभव हो तो फलाहार करें. पंचमी तिथिसे ही वीतक कथा प्रारंभ हो जाती है. जो श्रावण कृष्ण सप्तमी तक चलती है.

तीज एवं चौथी पर गाए जाने वाले प्रकरण:-
१. अब हम धाम चालत हैं - किरंतन-प्र. ९२
२. सैयां हम धाम चले - किरंतन-प्र. ८८
३. अब हम चले धाम को - किरंतन-प्र. ९३
४. चलो चलो रे साथ - किरंतन-प्र. ८९
५. निजनाम सोई जाहर हुआ - किरंतन-प्र. ७६
६. षतऋतुके सभी प्रकरण....

संवत १७१२ भाद्र शुक्ल १४ की रात्रि श्री देवचन्द्रजी महाराज धाम पधारे थे. अत: इस तिथिमें उपवास रखकर निम्न प्रकरणोंको गाना चाहिए.
१. ओही ओही करती फीरों - प्रकाश-हि. प्र. ६
२. पुकार चले मेरे पीऊजी - प्रकाश- हि.प्र. ८
३. मेरे धनी धामके दुलाहा - किरंतन-प्र. ७५
४. मागत हों मेरे दुलहा - किरंतन-प्र. ६२

सं १७५० वैशाख शुक्ल ८ के दिन श्री बाईजीराज महाराजीका धामगमन हुआ था. अत: उस दिन उपवास रखकर निम्न प्रकरण गायें.
१. क्यों दियो रे विछोहा दुलहा - परिक्रमा- प्र. १८

सं १७८८ पौष कृष्ण तृतीयाको महाराजा छत्रसालका धामगमन हुआ था. उस दिन उपवास रखकर निम्न प्रकरणोंको गाना चाहिए.
१. मेरे मीठे बोले साथाजी - किरंतन-प्र. ८०
२. आग पडो तिन कायरो - किरंतन-प्र. ८७

नोट: सभी धामगमन तिथियों पर विरहके प्रकरण गायें तथा आरती एवं भोग पश्चात प्रसाद ग्रहण करें.

श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम