10/28/2010

वन्दन गुरु देवकी

वन्दन गुरु देवकी 
अनन्त विभूषित परमवन्दनीय प्रात:स्मरणीय जगतगुरु आचार्य श्री १०८ कृष्णमणिजी महाराज के इन पावन चरण कमलोंमें पुष्प अर्पित शाष्टांग दण्डवत प्रेम-प्रणाम भेट में चढ़ाता हूँ |

आज के इस पावन सन्त मिलन के शुभ बेला पर उपस्थित सन्त महापुरुष, विद्वोत वर्ग, विद्यार्थी मित्रों, श्री ५ नवतनपुरी धाम के माननीय ट्रस्टी वर्ग तथा दूर-दूरसे पधारे हुए भक्त समुदाय तथा श्री राजश्यमाजी के लाडिले प्यारे सुन्दरसाथको मेरा अन्तर हृदय से पुष्प अर्पित प्रेम प्रणाम |

प्यारे सुन्दरसाथजी ! सतगुरु की महिमा गानेसे गाया नहीं जा सक्ता, लिखने से लिखा नहीं जा सक्ता, सब्दों के द्वारा पुष्टि किया नहीं जा सक्ता है. क्योंकि गुरु और गोविन्द दोनों एक हैं | इन दोनों की महिमा जितनी भी लिखी जय, कही जय, तथा सूनी जय, फ़िर भी कमी ही होती है | और कमी का ही महेसूश होता ही रहेगा |

सन्त कबीरदासजी इस बातको पुष्टी करते हैं, कि अगर शीश देकर गुरु मिल जाय तो भी सस्ता जान | गुरु गीता में कहा है, गुरु 
ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही महेश्वर हैं, गुरु ही साक्षात पूर्णब्रह्म परमात्मा हैं | 
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमुर्तिम |
द्वंदातीतं गगन सद्रिषम तत्त्वमस्यादि लक्ष्यं ||
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वदा साक्षीरुपम |
भावातीतं त्रिगुण रहितं सद्गुरु तं नमामी ||
सुन्दरसाथजी ! जो ब्रह्मानन्द स्वारूप, परम सुख दाता, देवल ज्ञानमूर्ति, द्वन्दोंसे परे, गगन सदृश, तत्त्वमसि आदि महावाक्योंके लक्ष्यार्थभूत, एक, नित्य, विमल, अचल, समस्त बुद्धियोंके साक्षी और भावातीत हैं उन त्रिगुण रहित सदगुरुको मैं प्रणाम परता हूँ    |

प्यारे सुन्दरसाथजी इन्हीं दो शब्दों के साथ समस्त स-चराचर ब्रह्माण्डमें व्याप्त पूर्णब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत श्री कृष्णजी के चरणोंके जिन्होंने साक्षात दर्शन का अनुभव करवाया ऐसे सतगुरु श्री देवचंद्रजी महाराज तथा अनन्त विभूषित परमवन्दनीय सुख के दाता वर्तमान सतगुरु श्री १०८ कृष्णमणिजी महाराज के उन पावन चरण-कमलोंमें तन, मन श्रद्धा से पुष्प अर्पित प्रेम प्रणाम करता हूँ || प्रणाम ||

श्री ५ नवतनपुरी धाम सन्त सभा 
अर्जुन राज