आचार संहिता
त्याग, तपस्या, आत्म चिन्तन एवं साक्षात्कारके द्वारा महापुरूषोंने जिस परम ( पद पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं अखण्ड परमधाम ) को प्राप्त किया है, सामान्य व्यक्तिके लिए भी वह सुलभ बन सके इस उद्देश्यसे यह आचार संहिता उन्हीं महापुरूषों द्वारा निर्दिष्ट सोपानके आधार पर यहां प्रस्तुत की जा रही है.
सन्त महात्माओंके लिए
मौन:-धर्मके अतिरिक्त अन्य कोई भी अनावश्यक बातें न करें.
दर्शन:-पूर्णब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत श्रीकृष्ण-अर्थात श्रीराजश्यामाजीके स्वरूपको अपने हृदयमें धारण करें.
सात्विक भोजन:-सादा एवं सात्विक भोजन करें.
स्थिर आसन:-अपने स्थान पर ही टिके रहें. धर्म प्रचारके अतिरिक्त व्यर्थ भ्रमण न करें.
ब्रह्मचर्य:-ब्रह्मचर्यका पालन करें तथा परस्त्रीको माताके समान समझें.
संतोष:-श्री धामधनी पर विशवास रखते हुए सदैव धर्म प्रचार तथा समाज सेवाकी भावना रखें और धन लोलुपतासे दूर रहें.
गुरुभक्ति:-परमात्माका अनुभव करवाने वाले अपने सद्गुरुके अन्दर परमात्माके दर्शन करें एवं उनको परमात्माके साक्षात् प्रतिनिधि समझकर उनकी सेवा करें एवं उनके आदेशका पालन करें.
स्वाध्याय:-रात दिन लिखने पढ़ने, सिखाने सिकाने तथा ध्यान, जप, चिन्तनमें व्यातीत करें.
व्यवहार:-आपसमें सदा प्रेमका व्यवहार रखें, कभी किसीका दिल न दुखावें.
प्रायश्चित:- उपरोक्त नियमोंमें भंग होने पर उपवास, जप, क्षमायाचना एवं तीर्थ दर्शनके द्वारा प्रायश्चित कर लें.
श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम