युवापीढ़ी और धर्म
आजके युवक धार्मिक परिवारके होते हुए भी धर्मसे दूर भागते हुए दिखायी देते हैं. उनको अपने मातापिताके धार्मिक कार्योंमे भी रुचि नहीं होती है ! वे समझ नहीं पाते हैं कि उनके माता पिटा क्या कर रहे हैं !
माता पिटा भी अपने बच्चोंके प्रश्नोंका समुचित उत्तर न दे पानेके कारण उनको निराशा कर देते हैं ! कतिपय माता-पिटा यह भी सोचते हैं कि अभी इन बच्चोंको धर्मकी बात समझनेकी आवश्यकता नहीं हैं ! अवस्था होगी तब वे स्वयं विचार का लेंगे.....आदि आदि ! ऐसे अनेक कारन हैं जिनसे आजके युवा धर्मसे दूर जा रहे हैं ! उनको मात्र आजीविकाकी चिंता है, जीवनकी नहीं ! इसका परिणाम यह आने लगा कि वे अपनी महत्वाकांक्षाओंको पूर्ण करनेके लिए अनायास धन एवं प्रतिष्ठा कमानेके चक्करमें लगाने लगे ! रातो रत करोड़पति बननेका स्वप्न देखना आज सामान्य बात होने लगा ! तानावासे मुक्त होनेके लिए व्यसनोंका सहारा लेने लगे ! इस प्रकार युवा पीढीका व्यसनकी ओर आकर्षित होना सामान्य हो गया है !
आज विभिन्न प्रकारके अपराधोंमें संलग्न जितने भी व्यक्ति हैं वे प्राय: दिग्भ्रान्त युवा ही पाए जाते हैं ! अपघात करने वालोंमें भी युवाओंकी संख्या अधिक है ! जितने लोग दिप्रेशनके शिकार बने हैं उनमें भी अधिकांश लोग आजके तथाकथित शिक्षित युवा हैं ! आखीर ऐसा क्यों ? इन युवाओंको पढ़ानेमें उनके मतपिताने कितना कष्ट सहन किया, आर्थिक तंगीका अनुभव किया, अपने जीवनको होडमें लगाया फिर भी उसका परिणाम ऐसा क्यों आ रहा है ? इस पर अवश्य विचार होना चाहिए !
मुझे जहाँ तक लगता है इन सभी प्रश्नोंके उत्तर एक ही दिशाकी ओर केन्द्रित होता हैं, और वह केंद्र है संस्कार ! आप सभीको ज्ञात होना चाहिए कि ये संस्कार धर्मसे ही प्राप्त होते हैं ! आप लोग मात्र पूजा- पाठको ही धर्म मानते हैं, वास्तविकता ऐसी नहीं है ! मात्र पूजा- पाठ ही धर्म नहीं अपितु पूजा- पाठ भी धर्म है ! संक्षेपमें कहें तो लोक कल्याण ही धर्म है ! धर्मके अन्तर्गत वे सभी बातें आती हैं जिनसे मानवताका उत्थान होता है ! धर्मका परम लक्ष्य आनंदकी अनुभीती है वह स्वयंको जानने या पहचानने पर ही संभव है ! इसलिए मानवको अपने कर्तव्यका बोध हो जय और वह कर्तव्य परायण बन जाय तो वह जो कुछ भी करेगा, बोलेगा या सोचेगा वह सब धर्ममय हो जाएगा !
आज समाज धर्मके रहस्य तथा मूलभूत सिद्धान्तोंको समझे बिना मात्र रूढिग्रस्त होकर जड़ताकी ओर आगे बढ़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप धर्मका पालन भी मात्र दिखावा बनता जा रहा है ! ऐसेमें धर्मका मर्म छिप गया और मात्र बाह्य आचरण अथवा जड़ नियम ही धर्मका स्वरूप धारण करने लगे जिसके कारण लोग पढ़लिखकर भी धार्मिक नहीं हो सके !
आजके युवा अपनी आजीविकाके लिए चिंतित हैं और उनके माता पिता वृद्धावस्थाके लिए चिन्तित हैं कि सन्तान उन्हें घरमें रहने देंगी या नहीं ? इस प्रकार समाजमें चारों ओर अशान्ति है, चिन्ता है और समस्यायें है !
इन समस्याओंका एक ही समाधान है कि युवापीढ़ी धर्मका मर्म समझकर उसका पालन करे ! आज युवाओंके लिए धर्मकी जितनी आवश्यकता है उतनी वृद्धोंके लिए नहें है ! क्योंकि युवापीढीको अपनी जीवन यात्रा दीर्घकाल पर्यन्त तय करनी है ! वृद्ध तो किनारे पहुँच गए हैं इसलिए उनको तो अपना अन्तिम सुधारना है !
परिवारमें पिता- पुत्र, पति- पत्नी, भाई- भाई, सास- बहु, मित्र- बंधू आदि जितने भी सम्बन्ध हैं उनको अपने अपने कर्तव्यका बोध करवानेमें धर्म ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ! धर्मके द्वारा ही इन सम्बन्धोंकी जानकारी होगी एवं सम्बन्धोंके अनुरूप कर्तव्यका बोध होगा ! वस्तुत: मनुष्यको अपने कर्तव्यका बोध हो जाय और वे अपने अपने दर्तव्योंका पालन निष्ठांपूर्वक करने लग जायें तो अवश्यमेव सर्वत्र शान्ति छा जायेगी !
धर्म मानवीय व्यवहारमें जितनी गहराई तक पहुँचा है उतनी ही आध्यात्मिक उचाईमें भी स्थान रखता है ! इसलिए जीवनको सुखी, शान्त तथा आनन्दित बनानेके लिए धर्मका मर्म समझना अति आवश्यक है ! तभी जीवनमें सही दिशा प्राप्त होगी ! धर्मके द्वारा प्राप्त संस्कारोंके कारण ही मानव मानव बनकर जी सकता है और ऐसा संस्कारी व्याक्ति आनन्दका अनुभव कर सकता है !!
प्रणाम