3/04/2010

जगद्गुरु आचार्य श्री १०८ कृष्णमणिजी महाराज

युवापीढ़ी और धर्म   
आजके युवक धार्मिक परिवारके होते हुए भी धर्मसे दूर भागते हुए दिखायी देते हैं. उनको अपने मातापिताके धार्मिक कार्योंमे भी रुचि नहीं होती है ! वे समझ नहीं पाते हैं कि उनके माता पिटा क्या कर रहे हैं !
माता पिटा भी अपने बच्चोंके प्रश्नोंका समुचित उत्तर न दे पानेके कारण उनको निराशा कर देते हैं ! कतिपय माता-पिटा यह भी सोचते हैं कि अभी इन बच्चोंको धर्मकी बात समझनेकी आवश्यकता नहीं हैं ! अवस्था होगी तब वे स्वयं विचार का लेंगे.....आदि आदि ! ऐसे अनेक कारन हैं जिनसे आजके युवा धर्मसे दूर जा रहे हैं ! उनको मात्र आजीविकाकी चिंता है, जीवनकी नहीं ! इसका परिणाम यह आने लगा कि वे अपनी महत्वाकांक्षाओंको पूर्ण करनेके लिए अनायास धन एवं प्रतिष्ठा कमानेके चक्करमें लगाने लगे ! रातो रत करोड़पति बननेका स्वप्न देखना आज सामान्य बात होने लगा ! तानावासे मुक्त होनेके लिए व्यसनोंका सहारा लेने लगे ! इस प्रकार युवा पीढीका व्यसनकी ओर आकर्षित होना सामान्य हो गया है !
आज विभिन्न प्रकारके अपराधोंमें संलग्न जितने भी व्यक्ति हैं वे प्राय: दिग्भ्रान्त युवा ही पाए जाते हैं ! अपघात करने वालोंमें भी युवाओंकी संख्या अधिक है ! जितने लोग दिप्रेशनके शिकार बने हैं उनमें भी अधिकांश लोग आजके तथाकथित शिक्षित युवा हैं ! आखीर ऐसा क्यों ? इन युवाओंको पढ़ानेमें उनके मतपिताने कितना कष्ट सहन किया, आर्थिक तंगीका अनुभव किया, अपने जीवनको होडमें लगाया फिर भी उसका परिणाम ऐसा क्यों आ रहा है ? इस पर अवश्य विचार होना चाहिए !
मुझे जहाँ तक लगता है इन सभी प्रश्नोंके उत्तर एक ही दिशाकी ओर केन्द्रित होता हैं, और वह केंद्र है संस्कार ! आप सभीको ज्ञात होना चाहिए कि ये संस्कार धर्मसे ही प्राप्त होते हैं ! आप लोग मात्र पूजा- पाठको ही धर्म मानते हैं, वास्तविकता ऐसी नहीं है ! मात्र पूजा- पाठ ही धर्म नहीं अपितु पूजा- पाठ भी धर्म है ! संक्षेपमें कहें तो लोक कल्याण ही धर्म है ! धर्मके अन्तर्गत वे सभी बातें आती हैं जिनसे मानवताका उत्थान होता है ! धर्मका परम लक्ष्य आनंदकी अनुभीती है वह स्वयंको जानने या पहचानने पर ही संभव है ! इसलिए मानवको अपने कर्तव्यका बोध हो जय और वह कर्तव्य परायण बन जाय तो वह जो कुछ भी करेगा, बोलेगा या सोचेगा वह सब धर्ममय हो जाएगा !
आज समाज धर्मके रहस्य तथा मूलभूत सिद्धान्तोंको समझे बिना मात्र रूढिग्रस्त होकर जड़ताकी ओर आगे बढ़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप धर्मका पालन भी मात्र दिखावा बनता जा रहा है ! ऐसेमें धर्मका मर्म छिप गया और मात्र बाह्य आचरण अथवा जड़ नियम ही धर्मका स्वरूप धारण करने लगे जिसके कारण लोग पढ़लिखकर भी धार्मिक नहीं हो सके !
आजके युवा अपनी आजीविकाके लिए चिंतित हैं और उनके माता पिता वृद्धावस्थाके लिए चिन्तित हैं कि सन्तान उन्हें घरमें रहने देंगी या नहीं ? इस प्रकार समाजमें चारों ओर अशान्ति है, चिन्ता है और समस्यायें है !
इन समस्याओंका एक ही समाधान है कि युवापीढ़ी धर्मका मर्म समझकर उसका पालन करे ! आज युवाओंके लिए धर्मकी जितनी आवश्यकता है उतनी वृद्धोंके लिए नहें है ! क्योंकि युवापीढीको अपनी जीवन यात्रा दीर्घकाल पर्यन्त तय करनी है ! वृद्ध तो किनारे पहुँच गए हैं इसलिए उनको तो अपना अन्तिम सुधारना है !
परिवारमें पिता- पुत्र, पति- पत्नी, भाई- भाई, सास- बहु, मित्र- बंधू आदि जितने भी सम्बन्ध हैं उनको अपने अपने कर्तव्यका बोध करवानेमें धर्म ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ! धर्मके द्वारा ही इन सम्बन्धोंकी जानकारी होगी एवं सम्बन्धोंके अनुरूप कर्तव्यका बोध होगा ! वस्तुत: मनुष्यको अपने कर्तव्यका बोध हो जाय और वे अपने अपने दर्तव्योंका पालन निष्ठांपूर्वक करने लग जायें तो अवश्यमेव सर्वत्र शान्ति छा जायेगी !
धर्म मानवीय व्यवहारमें जितनी गहराई तक पहुँचा है उतनी ही आध्यात्मिक उचाईमें भी स्थान रखता है ! इसलिए जीवनको सुखी, शान्त तथा आनन्दित बनानेके लिए धर्मका मर्म समझना अति आवश्यक है ! तभी जीवनमें सही दिशा प्राप्त होगी ! धर्मके द्वारा प्राप्त संस्कारोंके कारण ही मानव मानव बनकर जी सकता है और ऐसा संस्कारी व्याक्ति आनन्दका अनुभव कर सकता है !!
प्रणाम