प्रिय सुन्दर सथाजी "जब भाग्य में सुख लिखा ही नहीं तो मिलेगा कहाँ से" इस भाव ने संसार में बहुत अनर्थ किया है ! न केवल कहने वालों पर ही इसका प्रभाव है अपितु इन शब्दों को सुनाने वालों पर भी अच्छा प्रभाव नहीं होता ! वास्तव में यह भावना अकर्मण्य तथा आलसी लोगों में पाई जाती है ! परन्तु कभी दभी उद्यमी तथा परिश्रमी पुरुष भी इस भावना का शिकार बन जाते हैं ! परन्तु यह सौभाग्यवश केवल किसी समय विशेष पर ही होता है, उनमें यह भावना सदा के लिए घर नहीं कर सकती !
भाग्य व प्रारब्ध यदि हैं तो क्या हैं ? इस सम्बन्ध में हम कर्म के सिद्धान्त के विवेचन दी सहायता लेंगे ! हमने पहले कहा है कि इस संसार में प्राणी स्वभाव से ही कर्मों में निहित है ! चाहे वह आलसी हो अथवा अकर्मण्य, कार्य अथवा कर्म तो उसे करने ही पड़ेंगे ! इसके साथ हम विज्ञान के साधारण तथा स्पष्ट सिद्धांत कि प्रत्येक क्रिया की उसी के सामान रथा उल्टी प्रतिक्रया अवश्यम्भावी है ! और कर्मो के विषय में भी यही सिद्धान्त लागू होता है, यदि यह बात हमारी समझ में आ जाती है तो भाग्य अथवा प्रारब्ध के अर्थ को भी सुगमता से समझ जायेंगे !
अब प्रश्न यह उठता है कि हमारे उन कर्मों का अथवा संकल्पों का क्या होता है जिनकी प्रतिक्रया इस जीवन में न हो सके ? ऐसा सम्भव है ! क्योंकि उन कर्मों अथवा संकल्पों का जो पूर्ण तो हो चुके हैं परन्तु परिणाम से पूर्ण शरीर से प्राण जा चुके हों, तो इन कर्मों का परिणाम यदि दूसरे जन्म में हो तो क्या आश्चर्य है ! पूर्व कृत शुभाशुभ कर्मों के संस्कारों का नाम ही तो 'देव' कहा जता है ! जिसे हम भाग्य अथवा प्रारब्ध भी कह देते हैं ! परन्तु इससे भयभीत होने कि क्या आवश्यकता है ! जिन थोड़े कर्मों के संस्कारों का फल पूर्व जन्म में पूर्ण नहीं हुआ वही तो वर्तमान जन्म बहुत महत्वपूर्ण है ! पिछले कर्मों पर तो है ! हम जैसे जैसे कर्म करेंगे वैसे हमारा भाग्य बनेगा ! "मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है" इसमें अब सन्देह का कोई स्थान नहीं रहना चाहिये ! हम जो चाहते हैं वैसे ही कर्म यदि हम करें तो परिणाम प्रतिकूल नहीं होगा ! दूसरे शब्दों में हमारा भाग्य हमारे साथ ही है ! यह कोई बाह्य शक्ति नहीं !
अब एक प्रश्न और भी है ! यह पंचांग, हस्तरेखा इत्यादि क्या है ? इस विषय में हम अधिक प्रकास डालने में असमर्थ हैं ! ऐसा कहा जाता है कि यह एक कुशल विज्ञान है जिसका आधार गणित है ! जो भी है हमारी मूलभूत धारणा यह है कि चाहे यह सफल विज्ञान है अथवा कुछ और यह किसी के भाग्य को बदलने में कोई सहायता नहीं कर सकता ! भाग्य अथवा प्रारब्ध कुछ भी नहीं केवल हमारे कर्म ही हैं !
प्रणाम.................अर्जुन राज