3/03/2010

मेहरबान

न देवे दुःख किन को, पर मारे सबों तकसीर |
क्या राय, राणे, पातशाह, क्या मीर पीर फ़कीर ||
लोग कहते हैं कि परमात्मा कि आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, परन्तु ऐसा वे तब कहते हैं जब कोई काम बिगड़ देते हैं | जब अच्छा किया तो अहं को बहुत बढ़ा चढ़ा दिया जता है और बुरे कर्मों का दोष उस परमात्मा के नाम मढ़ दिया जाता है | वास्तव में जब महानात्माएँ, जिन को यदि दैवी शक्तियों की उपमा दी जाए तो अच्छा होगा, शरीर धारण करती है तो वे भी प्रकृति के नियमानुसार व्यावहार करती हैं | सहज, नियंत्रित, नियमित जीवन ही सुन्दर भाग्य बना देता है | इसके विपरीत जीवन दुखमय बन कर रह जाता है | यदि उस प्रभु के राजदूत बनकर उसके बनाए अर्थात प्रकृति अथवा संसार के  नियमों का भली-भाँती पालन करते हुए अपने कर्तव्यों को निभाते जाएँ तो हमें कोई दुःख नहीं रहेगा |
'जो कदी कहर नजर करी, तो भी वास्ते मैहर |
उसके दुःख भी मेहर हैं | यदि हम अपने कर्मों को उसी के समर्पण कर दे तो सतत आनन्द कि अनुभूति होगी || प्रणाम ................अर्जुन राज