प्रिय सुन्दर साथ जी वनस्पति पशु, पक्षी तथा मनुष्य सब में भावनाए हैं. मनुष्य इन भावनाओं को अपनी इन्द्रियों द्वारा प्रदर्शित करने में भी समर्थ है. प्रेम, क्रोध, घृणा, क्षोभ, उदासीनता, सहानुभूति आदि भावनाएं मनुष्य के स्वभाव का आधार हैं. मनुष्य में भावनाए न हों यह संभव नहीं, या तो वह पत्थर है अथवा कल पुर्जों से चलने वाली मशीन. भावुकता से अभिप्राय है | मनुष्य का उपरोक्त लिखी भावनाओं का अधिक प्रदर्शन जैसे थोड़े से दुःख की स्थिति में आंसू आ जाना. छोटी-छोटी बात पर बहुत क्रोध अथवा प्रेम का अधिक प्रदर्शन भावुकता के चिन्ह हैं. भावुकता हमारी प्रगति तथा सुखी जीवन में बढ़ा बन जाती है. भावनाओं तथा भाविकता का अंतर हमने पहले ही स्पष्ट कर दिया है. भावनाओं को उचित मोड़ देना आवश्यक है. साधारणतया मनुष्य भावनाओं में बह जाता है . प्रेम उमड़ा तो सर्वस्व लुटा दिया, क्रोध आया तो सब छीन लूं अथवा दूसरे को नोच लूँ ऐसी दशा हो जाती है. क्योंकि भावुकता छुपी नहीं रह सकती, इसलिए दुष्ट जन इसका अनुचित लाभ भी उठाते हैं. दूसरों की भावनाओं का आदर करना उन्हें समझना तथा विवेक से अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख भावुकता से बचना श्रेयस्कर है....
प्रणाम .............अर्जुन राज