3/14/2010

मानव-प्रकृति की माँग:-

मानव प्रकृति-यदि मूल (Nature) पर कायम हो  एवं विभिन्न अन्दरूनी और बाहरी कारकों ने उसमें विकार, बिगाड़ व् अपभ्रष्टता न पैदा कर दी हो तो-अपने सहज स्वभाव के अन्तर्गत यह माँग करती है कि:-
१. अच्छे और बुरे लोगों का मरने के बाद एक जैसा ही परिणाम न हो, यानी सड़-गलकर एक ही तरह दोनों ख़त्म हो जाएँ और कहानी समाप्त हो जाए, ऐसा न हो !
२. ईश्वर के बागियों, अवज्ञाकारों, इनकार करने वालों का तथा सभी धर्मवालों का परिणाम, मृतु पश्चात एक जैसा न हो !
३. जिन लोगों ने अत्याचार व् अन्याय किये और धन, सत्ता, पहुँच-सिफारिश, धौंस-धांधली या क़ानून व सजा के सांसारिक विधानों  की त्रुटी, सीमितता या पक्षपात के चलते या तो साफ़ (Clean Chit) बच गए या थोड़ी-सी अधूरी, प्रतीकात्मक (Symbolic) सजा पाकर बच निकले उन्हें कहीं न कहीं, कभी न कभी (जो इस जीवन में संभव न हो पायी हो) पूरे, निष्पक्ष, बेलाग इन्साफ के साथ पूरी सजा मिले !
४. जिन लोगों के साथ इस जीवन में अत्याचार हुआ, जिनके अधिकारों का हनन हुआ जिनका बहायामी शोषण किया गया और जिन्हें पूरा या आधा अधूरा या कुछ भी इन्साफ न मिला उन्हें कही न कभी, कहीं न कहीं पूरा न्याय मिलना चाहिए !
५. जो लोग नेक हुए, चरित्रवान हुए , बड़े से बड़ा नुकसान उठाकर बी, घोर कष्ट झेल कर भी, बड़े-बड़े खतरों का चिलेंत लेकर भी सत्य मार्ग को न छोड़ा, अनाचार, उपद्रव, अराजकता, धाँधली, जुल्म के तेज तूफ़ान में भी उनके कनम सत्यमार्ग पर जमे रहे और इस जीवन में उन्हें इस सदाचार व सत्यनिष्ठा का कोई अच्छा बदला, पुरष्कार, पारितोषिक न मिला उसे मिलाने के लिए कोई और जगह, कोई और जीवन आवश्यत: मिलना चाहिए !!

जुदे जुदे नाम गावहीं, जुदे जुदे भेख अनेक !
जिन कोई झगड़ो आपमें, धनी सबों का एक !!