भेदभाव के भाव से महसूस होता है अभाव: --
एक बार एक अघोरी साधु श्मशान घाट में अपने दोनों हाथों की मुट्ठियों में चिता की राख भरकर बैठा था। वह एक मुट्ठी को खोलकर राख को कुछ देर तक सूँघता रहता और फिर मुट्ठी बंद कर दूसरे हाथ की मुट्ठी के साथ भी ऐसा ही करता।
उसे ऐसा करते हुए बहुत देर से देख रहे एक व्यक्ति ने उसके पास जाकर पूछा- 'महाराज, आप राख को सूँघकर क्या जानने में लगे हैं?' साधु बोला- 'बच्चा, हम गहरी खोज में लगे हैं, लेकिन हमें नहीं लगता कि हम अपने इस कार्य में सफल होंगे।' व्यक्ति- 'कौन-सी गहरी खोज?'
इस पर साधु ने अपने एक हाथ की मुट्ठी खोलकर उसे दिखाते हुए कहा- 'यह जीवन के सारे ऐशोआराम भोगने वाले एक राजा की राख है।' फिर दूसरी मुट्ठी दिखाते हुए बोला- 'और यह एक ऐसे गरीब की राख है जिसने अपनी जिंदगी के आधे दिन फाके में काटे।
मैं दोनों की राख सूँघकर इनके बीच के अंतर को जानने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी मुझे सफलता नहीं मिल पा रही है। मुझे तो दोनों ही राख एक बराबर लग रही हैं।'
दोस्तो, कहावत है कि ईश्वर की नजर में सब बराबर हैं, क्योंकि उसने सबको बराबर जो बनाया है। उसके लिए न कोई अमीर है, न गरीब। न कोई ऊँच, न नीच। न कोई छोटा, न बड़ा। लेकिन विडंबना यह है कि दिन-रात उससे याचना कर उसकी राह पर चलने का दावा करने वाले उसके बंदे, उसके भक्त ही सबको बराबरी की नजर से नहीं देखते, क्योंकि उनकी नजर, उनके मन, आचरण में भेदभाव होता है।
इसी कारण वे सामने वाले को अपने से छोटा या बड़ा, ऊँचा या नीचा मानते हैं। और जो ऐसा करते हैं, वे अपने पास सब कुछ होने के बाद भी एक कमी-सी, एक अभाव-सा महसूस करते हैं।
pranam..........
arjun raj