3/08/2010

सुखी कौन

एक बार पाटली पुत्रमें प्रवचनके दौरान महात्मा बुद्धसे उनके शिष्य आनन्दने पूछा, भगवन आपके सामने हजारों लोग बैठे हैं, बताइए इनमें सबसे सुखी कौन है ? बुद्धने कहा, वह देखो- सबसे पीछे जो दुबला- फटेहाल आदमी बैठा है वही सबसे सुखी है ! इस उत्तरसे आनन्द संतुष्ट नहीं हुआ ! उसने कहा, यह कैसे हो सकता है ? बुद्ध बोले, अभी बताता हूँ ! आसनसे उठकर सामने बैठे लोगोंके पास गये और बारी बारीसे सभीको पूछा ! तुम्हें क्या चाहिए ?
उनमेंसे किसीने धन माँगा तो किसीने मकान, किसीने पाती तो किसीने पुत्र, किसीने निरोग, किसीने जमीन जायदाद, किसीने शत्रुक्षय तो किसीने कुछ इस प्रकार सभीने अपनी अपनी चाह बताई ! कोई भी ऐसा आदमी नहीं निकला जिसने कुछ नही माँगा हो ! बुद्ध वहाँसे दूर बैठा उस फटेहालके पास गये और पूछा, कहो भाई तुम्हें कुछ चागिए ? उस आदमीने कहा, कुछ भी नही भगवन मुझे कुछ नही चाहिए ! बुद्धने कहा अरे भी, सभीने कुछ न कुछ माँगा तो तुम भी मांगो ! उसने विनम्रतापूर्वक कहा भगवन यदि आप देना ही छ्गते हैं तो इतना ही दीजिए कि 'मेरे अन्दर कुछ मांगनेकी चाह ही पैदा न हो यह वरदान दिजिए !'
तब बुद्धने आनन्दसे कहा, आनन्द- जहाँ चाह है, वहाँ सुख कदापि नही हो सकता !
चाह गई चिन्ता मिटी मनुवा वेपरवाह !
जिसको कछु न चाहिए वह शाहनका शाह !!
संकलन अर्जुन राज
श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर