स्वामी श्री हरिदासजीका श्री कृष्णभक्तिका भाव देखकर श्री देवचंद्रजी महाराजको उनके प्रति आगाध श्रद्धा हुई और वे उनके पास रहकर भक्तिसाधानामें लगे, शीघ्र ही श्री देवचन्द्रजी महाराज प्रभु भक्तिमें कुछ इस प्रकार लीन हुए की उनकी भक्तिका रंग स्वामी श्री हरिदसको भी प्रभावित करने लगा और वे उन्हें अपना गुरु मानने लगे, आत्मगयानियोंकी यह अवस्था स्वत: ही हो जाती है, जो प्रभुभजनमें तल्लीन होता है उनको सांसारिक मोह मायाँ (मर्यादाएँ) बाँध नहीं पाती है । सादर प्रेम प्रणाम ..............