
धर्मप्राण भारतवर्षकी पावन धराकी यह विशेषता रही है की जब-जब यहाँ धर्मकी हनी और अधर्मकी वृद्धि हुई है, तब-तब मानवमात्रके कल्याणार्थ और धर्मकी पुनः स्थापना हेतु महापुरूषोंका अवतरण होता रहा है। श्री कृष्ण परनामी धर्मके आद्य प्रवर्तक सद्गुरु श्री देवचंद्रजी महाराजका जन्म विक्रम संवत १६३८ (१५८७ई) आश्विन शुक्ल चतुर्दशीके दिन तत्कालीन मारवाड़ प्रदेशके उमरकोट ग्राम (वर्त्तमान सिंध प्रदेश) में प्रसिद्ध व्यापारी श्रीमत्तु मेहता और माता कुंवरबाईका जीवन श्री कृष्ण भत्तिमें समर्पित था और वे पूर्ण श्रद्धा भावसे धर्म-अर्चना, पूजा-पाठमें तल्लीन रहते थे, श्री देवचन्द्रजी महाराज ही उनकी वृद्धावस्थाके एकमात्र सहारा थे । प्रनामजी ।