2/20/2010

श्री देवचन्द्रजी महाराज का गादी अभिषेक:-

जहाँ पर परमधामकी साक्षात लीला प्रकट हुई है, उसी स्थानका नाम धर्मपीठ है और वहीं आचार्य गादी हो सकती है, इसी स्थान पर सुन्दरसाथने वि.सं.१६८७ कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी, गुरूवारके दिन प्रात: शुभ बेलामें श्रीदेवचन्द्रजीको उच्च गादी पर बैठाया और नगर सेठ गांगजीभाईने तिलक कर आरती की, जाम लाखाजी (प्रथम) ने शाल ओढ़ाकर आचार्य पदसे विभूषित किया, उसी दिनसे यह स्थान निजानन्द स्वामी श्रीदेवचन्द्रजीके नामसे प्रसिद्ध है, यह परम्परा वर्तमानमें भी चालू है, श्री ५ नवतनपूरी धामके जो भी गादीपति होते हैं उन्हें जाम साहेब(जामनगरके राजाके वंश) तथा यहाँ के पुजारी सर्व प्रथम चादर विध करते हैं, श्री निजानन्द स्वामीने श्री कृष्ण प्रणामी धर्म-निजानन्द सम्प्रदायको प्रकट किया है, अत: यह गादी निजानन्द सम्प्रदाय (श्रीकृष्ण प्रणामी धर्म) की आद्य गादी के नामसे पुकारी जाती है, यह गादी निजानंदाचार्य सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराजकी गादी है ।

निजानन्द स्वामी द्वारा स्थापित इस धर्मपीठके जो भी अधिकारी होते हैं, उन्हें निजानन्द सम्प्रदायाचार्य अथवा श्री कृष्ण प्रणामी धर्माचार्य कहा जाता है, धर्मपीठके अधिकारी परम्परासे सभी परवर्ती धर्माचार्य भी निजानन्द स्वामीके स्थानीय दैवतको प्राप्त होनेके कारण उसी शोभाको धारण किए होते हैं, यहाँ गादीका तात्पर्य गादी स्थानसे है, वह यावत् चन्द्रदिवाकरौ स्थायी होता है, मूढ़ लोग रूई एवं कपड़ा द्वारा बनाई गई गादी मात्रको गादी समझते हैं, यह उनकी अल्पज्ञता है, ऐसी गादीको तो कोई भी व्यक्ति बना सकता है और किसी भी स्थानमें बिछाकर बैठ सकता है, वस्तुत: गादी वह कहलाती है- जिस स्थानको महापुरूषोंने अपनी तपस्या द्वारा अविचल स्थायी किया होता है, जहाँ पर महापुरूष द्वारा आचार्य गादी स्थापित की गई, वहाँ पर "स्थानं न प्रधानं न बलं प्रधानं" की उक्तिके अनुसार स्थान ही प्रधान होता है, अत: वह स्थान " यावत् चन्द्रदिवाकरौ " यथावत पूज्य बना रहेगा, श्री ५ नवतनपूरी धाम की इस पावन भूमि पर साक्षात् परमधामकी अखंड लीला हुई थी, हो रही है और होती रहेगी । प्रणाम ...................