
निजानन्द स्वामी द्वारा स्थापित इस धर्मपीठके जो भी अधिकारी होते हैं, उन्हें निजानन्द सम्प्रदायाचार्य अथवा श्री कृष्ण प्रणामी धर्माचार्य कहा जाता है, धर्मपीठके अधिकारी परम्परासे सभी परवर्ती धर्माचार्य भी निजानन्द स्वामीके स्थानीय दैवतको प्राप्त होनेके कारण उसी शोभाको धारण किए होते हैं, यहाँ गादीका तात्पर्य गादी स्थानसे है, वह यावत् चन्द्रदिवाकरौ स्थायी होता है, मूढ़ लोग रूई एवं कपड़ा द्वारा बनाई गई गादी मात्रको गादी समझते हैं, यह उनकी अल्पज्ञता है, ऐसी गादीको तो कोई भी व्यक्ति बना सकता है और किसी भी स्थानमें बिछाकर बैठ सकता है, वस्तुत: गादी वह कहलाती है- जिस स्थानको महापुरूषोंने अपनी तपस्या द्वारा अविचल स्थायी किया होता है, जहाँ पर महापुरूष द्वारा आचार्य गादी स्थापित की गई, वहाँ पर "स्थानं न प्रधानं न बलं प्रधानं" की उक्तिके अनुसार स्थान ही प्रधान होता है, अत: वह स्थान " यावत् चन्द्रदिवाकरौ " यथावत पूज्य बना रहेगा, श्री ५ नवतनपूरी धाम की इस पावन भूमि पर साक्षात् परमधामकी अखंड लीला हुई थी, हो रही है और होती रहेगी । प्रणाम ...................