भूमिका
श्री किरन्तन ग्रन्थ श्री कृष्ण प्रणामी धर्म-निजानन्द सम्प्रदायके परम पावन महाग्रंथ महामति श्री प्राणनाथजीकी दिव्य वाणी श्री तारतम सागरका षष्ठ ग्रन्थ है ! विश्वमें प्रचलित भिन्न-भिन्न धार्मिक मत-मतान्तरों, मान्यताओं, विचारों एवं सिद्धान्त पृथक-पृथक अथवा मिश्रित रूपमें समाहित होनेसे महामति श्री प्राणनाथजीके समग्र उपदेशके नवनीतको "श्री तारतम सागर" कहा गया है ! इस विशालकाय ग्रन्थमें धर्मके सिद्धान्त, दर्शन, साधना पद्धति एवं मान्यताओंके साथ साथ परमात्माका धाम, स्वरूप, नाम तथा लीलाओंका विशद वर्णन है ! विभिन्न मत-मतान्तर एवं धर्ममें प्रचलित बाह्य आडम्बरसे मुक्त होकर धर्मके शुद्धस्वरूपके पालनकी प्रक्रिया तथा एक उदात्त, सुशिक्षित एवं स्वस्थ समाजकी रचनाकी बात इसमें कही गई है ! प्रत्येक सुन्दरसाथके लिए अपने मूल स्वरूप पर-आत्मा, मूलघर परमधाम एवं अपने स्वामी पूर्णब्रह्म परमात्माकी पहचानके लिए मार्गदर्शिका होनेसे इस महाग्रन्थको पूर्णब्रह्म परमात्माकी वांग्मय मूर्तिके रूपमें श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिरोंमें पधराकर उसका पूजन, पठन तथा परायण किया जाता है ! इसमें हिन्दी, गुजराती सिंधी, अरबी आदि भाषाओं तथा अरबी फ़ारसी मिश्रित हिन्दी एवं जाटी आदि बोलियोंका प्रयोग हुआ है !
विभिन्न रागयुक्त गेय पदावलिके कारण इसका नाम कीर्तन (किरन्तन) रखा गया है. इसमें कुल १३३ प्रकरण तथा २१०२ चौपाइयाँ हैं. इसकी भाषा हिन्दी है तथापि इसमें गुजराती भाषामें पच्चीस प्रकरण तथा सिन्धींमें एक प्रकरण है.
विभिन्न रागयुक्त गेय पदावलिके कारण इसका नाम कीर्तन (किरन्तन) रखा गया है. इसमें कुल १३३ प्रकरण तथा २१०२ चौपाइयाँ हैं. इसकी भाषा हिन्दी है तथापि इसमें गुजराती भाषामें पच्चीस प्रकरण तथा सिन्धींमें एक प्रकरण है.
इस ग्रंथमें अधिकांश चौपाइयाँ हिन्दी भाषामें हैं तथापि पुरानी भाषा तथा वेदान्त दर्शन परक प्रसंगोंके कारण यह दुरूह रहा है. यह ग्रन्थ महामति प्राणनाथजीकी जगानी यात्राके समय निष्पक्ष दृष्टिकोणसे किए हुए सत्यके साक्षात्कारका परीक्षण एवं निरूपणका सन्कलन है. इसीलिए किरन्तनको सर्वदेशीय कहा गया है. मानव मूल्योंको जीवन्त बनानेके लिए एवं अन्तर निहित चेतनाको प्रस्फुटित करनेके लिए महामतिने इस ग्रंथके अनेक प्रकरणोंमें अपनी स्पष्ट एवं निर्भिक प्रतिक्रिया व्यक्त करनेमें लेशमात्र भी न्यूनता नहीं राखी है. इसी प्रकार समाजमें प्रचलित रूढ़ियों, जातिप्रथा, कुरीति, अंध विश्वास, सांप्रदायिक कट्टरता, बाह्य आचरण एवं कर्मकाण्डके प्रति भी उनका प्रहार समयोचित रहा है.
उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा कि परमात्मा क्षर, अक्षरसे परे अक्षरातीत हैं; वे ही विश्व-ब्रह्माण्डोंके परमाधिपति हैं; उनको शास्त्रोमें "अक्षरात परत: पर:" , "उत्तम: पुरुषस्त्वन्य" , "एकं सत" , "एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म", "सत्यं परं धीमहि" आदिके द्वारा अक्षरातीत, उत्तमपुरुष, परम सत्य, परम ध्येय तथा एक कहा है. इन्हीं पूर्णब्रह्म परमात्माके साथ हमारी आत्माका सम्बन्ध है. अपने अंत:करणको पवित्र बनाने पर इस सम्बन्धकी पहचान होगी. इसलिए साधन, ज्ञान या भक्तिके द्वारा अंत:करणको पवित्र बना कर स्वयं (आत्मा) की पहचान कर लेनी चाहिए. किरन्तनकी प्रथम चौपाई-
पहेले आप पहचानो रे साधो, पहले आप पहेचानो !
बिना आप चीन्हें पार ब्रह्मको, कौन कहे मैं जानो !!
इसी तथ्यको स्पष्ट करती है. इस प्रकार महामति प्राणनाथजीने बड़ी सरलतासे दार्शनिक तत्वोंका निरूपण करते हुए तत्वचिन्तनकी पराकाष्ठा स्पष्ट की है. इसके साथ-साथ मानव जीवनकी उपादेयताको स्पष्ट करते हुए पुराने किरन्तनके द्वारा धर्ममय जीवन जीनेकी कलाका निर्देशन दिया है.
चरचा कथा ता तेहने कहिए, जे आप रुए रोवरावे !
दिन दिन त्रास वधतो जाए, ते वंध रदेनां छोडावे !!
ए रे अर्थ मांहे छे अजवालुं, जो कोय जोसे रे विचारी !
रुदया मांहे थासे प्रकास, ज्यारे जागसे जीव संभारी !!
साध ओलखासे वचने, आने करसे समागम !
साध वाणी साध एम ओचारे, संगत छे साध रतन !!
तत्त्वज्ञान, गेय पदावली एवं व्यावहारिक उपदेशोंकी प्रचुरताके कारण 'किरन्तन' ग्रन्थ अत्यधिक लोकप्रिय है. आशा है सुधी पाठकवृन्द इसका अध्ययन एवं मनन कर अपने जीवनको धन्य बनाएँगे.
अधिक जानकारीके लिए संपर्क करे
श्री ५ नवतनपुरी धाम खिजडा मन्दिर जामनगर
श्री अर्जुन राज
प्रणाम