7/31/2010

अब्वल मेहेर है तित

महामति श्री प्राणनाथजी कहते हैं- प्रियतम परमात्माकी मधुर कृपाको मैंने अन्तरहृदयसे विचार पूर्वक देखा तो जहाँ उनका अलौकिक प्रेम रहता, वहीं पहलेसे ही मेहेरकी उपस्थिति भी रहती है ।
पूर्णब्रह्म परमात्माकी कृपा और प्रेमकी तुलना हम नहीं कर सकते हैं क्योंकि दोनों महान हैं । इसमें छोटा-बड़ा न्यूनाधिककी बात नहीं है । किसी माँ से पूछे कि-तुम्हारे दो बेटेमें से किससे अधिक प्यार है ? वह माँ क्या उत्तर देगी ? दोनों बेटे अपने हैं, किसमें ज्यादा प्रेम है कैसे कहें ? दोनोंमें बराबर रहता है । फ़िर भी उस माँ से कहा जाए कि तुम किसे अलग कर सकती हो ? वह कहेगी बड़ा बेटा कुछ समर्थ है, लेकिन छोटा तो कुछ नहीं कर सकता । अत: यदि लेजाना चाहते होतो बडेको लेजाना । विवश होकर माँ ऐसा उत्तर देगी । माँका प्यार, दोनोंमें न्यूनाधिक नहीं रहता है । इसी प्रकार परब्रह्म परमात्माकी मेहेर और इश्कमें कम ज्यादा नहीं है । एक सिक्केकी दो पहलूकी भाँति है । परन्तु महामति श्री प्राणनाथजी का कथन है कि यदि विवेकपूर्वक दिल, दिमागसे विचार कर देखा जाए तो जहाँ जिसके ऊपर परमात्माके अटूट प्रेम रहता है, वह प्रेम भी परमात्माके ही कृपा दृष्टिसे जानना चाहिए । यदि उनकी कृपा न होगी तो प्रेम भी कैसे उपलब्ध होगी ? कृपासागरकी कृपा के बिना कुछ भी होना संभव नहीं है । पल-पल क्षण-क्षण, कण-कणमें उनकी अमृतमयी कृपाकी वर्षा हो रही है एवं जहाँ प्रेमका अस्तित्व रहता है उससे पूर्व ही वहाँ मेहेरकी मौजूदगी रहती है । प्रिय सुन्दरसाथजी परमात्मा कि प्रेम (मेहेर) को समझने के लिए विशाल हृदयकी आवसेकता है । प्रणाम ।
अर्जुन राज