5/01/2010

प्रकाश ग्रन्थ महात्म्य:-

भूमिका
श्री प्रकाश ग्रन्थ श्री कृष्ण प्रणामी धर्म-निजानन्द सम्प्रदायके परम पावन महाग्रन्थ महामति श्री प्राणनाथजीकी दिव्य वाणी श्री तारतम सागरका द्वितीय ग्रन्थ है ! विश्वमें प्रचलित भिन्न-भिन्न धार्मिक मत-मतान्तरों, मान्यताओं, विचारों एवं सिद्धान्त पृथक-पृथक अथवा मिश्रित रूपमें समाहित होनेसे महामति श्री प्राणनाथजीके समग्र उपदेशके नवनीतको "श्री तारतम सागर" कहा गया है ! इस विशालकाय ग्रन्थमें धर्मके सिद्धान्त, दर्शन, साधना पद्धति एवं मान्यताओंके साथ साथ परमात्माका धाम, स्वरूप, नाम तथा लीलाओंका विशद वर्णन है ! विभिन्न मत-मतान्तर एवं धर्ममें प्रचलित बाह्य आडम्बरसे मुक्त होकर धर्मके शुद्धस्वरूपके पालनकी प्रक्रिया तथा एक उदात्त, सुशिक्षित एवं स्वस्थ समाजकी रचनाकी बात इसमें कही गई है ! प्रत्येक सुन्दरसाथके लिए अपने मूल स्वरूप पर-आत्मा, मूलघर परमधाम एवं अपने स्वामी पूर्णब्रह्म परमात्माकी पहचानके लिए मार्गदर्शिका होनेसे इस महाग्रन्थको पूर्णब्रह्म परमात्माकी वांग्मय मूर्तिके रूपमें श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिरोंमें पधराकर उसका पूजन, पठन तथा परायण किया जाता है ! इसमें हिन्दी, गुजराती सिंधी, अरबी आदि भाषाओं तथा अरबी फ़ारसी मिश्रित हिन्दी एवं जाटी आदि बोलियोंका प्रयोग हुआ है !
श्री प्रकाश ग्रन्थ मूलत: गुजराती भाषामें है ! महामतिने स्वयं इसका हिन्दी भाषान्तर भी किया है ! इस ग्रंथका अवतरण वि.सं.१७१४-१५ में श्री नवतनपुरी, जामनगरमें हुआ है ! इसमें कुल ३७ प्रकरण एवं १०६४ चौपाइयाँ हैं !
श्री प्रकाश ग्रन्थ हिन्दी रूपान्तरका अवतरण वि.सं.१७३६ में अनूप शहरमें हुआ है ! इसमें कुल ३७ प्रकरण एवं ११८५ चौपाइयाँ हैं ! हिन्दी रूपान्तरणमें भी प्रकरण संख्या गुजरातीकी ही भाँती है किन्तु भावको अधिक स्पष्ट करनेके कारण चौपाई संख्यामें वृद्धि हुई है ! महामतिने स्वयं इसका हिन्दी रूपान्तरण किया है इससे यह स्पष्ट होता है कि इसका महत्त्व विशेष है ! इसमें विरह वाणी, बेहद वाणी एवं प्रकट वाणीको अधिक स्पष्ट किया है ! शेष सभी प्रसंग गुजरातीके अनुरूप है !!
श्री प्रकाश ग्रन्थ रास लीलाके रहस्यको प्रकाशित करता है ! पूर्णब्रह्म परमात्माने अपनी आत्माओंको व्रज एवं रासकी लीलाओंका अनुभव करवाया ! इन लीलाओंमें श्री कृष्ण साथमें थे इसलिए ब्रह्मात्माओंको नश्वर जगतके सुख-दुखोंका अधिक अनुभव नहीं हुआ ! महामति कहते हैं, 'प्रेम पियासों न करे अन्तर, तो ए दुःख देखे क्योंकर !' वस्तुत: परमात्मा साथमें हों तो दुःख भी दुःख जैसे नहीं लगते ! ब्रह्मात्माओंको सांसारिक दुःख-सुखोंका अनुभव करवाकर जागृत करनेके लिए जागनी लीला है ! प्रकाश ग्रन्थ जागनीका प्रथम सोपान है ! इसके प्रारम्भमें ब्रह्मात्माओंका अवतरण, उन्हें जगानेके लिये श्यामाजीको सद्गुरुके रूपमें भेजनेका उन्लेख है ! वे सुन्दरसाथको अपनी मूल बात याद दिलाकर सचेत करते हैं ! श्री राजजीने श्री श्यामाजीको अपनी शक्ति प्रदान कर ब्रह्मात्माओंको जागृत करनेके लिए सद्गुरुके रूपमें भेजा ! ब्रह्मात्माएँ उनके वचनोंको समझ नहीं पाई ! सद्गुरुके धामगमन होने पर उनके विरहमें सन्तप्त इन्द्रावतीकी वेदना कुछ प्रकरणोंमें व्यक्त हुई है ! अनेक प्रकरणोंमें ब्रह्मात्माओंको स्वयं जागृत होकर दूसरोंको जागृत करनेके लिए प्रेरणा दी गई है ! उनमें मारकंडेयका दृष्टान्त, राजा परीक्षित एवं शुकदेवजीका संवाद, वेहद वाणी, प्रकटवाणी आदि मुख्य हैं ! सुत कातनेके उदाहरण द्वारा कर्तव्यका बोध करवाया है ! लक्ष्मीजीके दृष्टान्त द्वारा श्री कृष्णजीकी सर्वोपरिता समझाई है ! बेहद वाणी द्वारा क्षर, अक्षर एवं अक्षरातीतका रहस्य स्पष्ट किया है !
इस प्रकार प्रकाश ग्रन्थ अज्ञानरूप आवरणको दूर कर आत्माको प्रकाशित करता है !!

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श्री ५ नवतनपुरी धाम जामनगर गुजरात
श्री अर्जुन राज
प्रणाम