3/27/2010

जीव दया ही परम धर्म है

1. जीव दया ही परम धर्म है


2. अच्छे लोग दूसरों के लिए जीते हैं जबकि दुष्ट लोग दूसरों पर जीते हैं


3. नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं


4. जिस तरह कीड़ा कपड़ों को कुतर देता है, उसी तरह ईर्ष्या मनुष्य को



5. श्रम शब्द में ही श्रम और संयम की प्रतिष्ठा है


6. भूत से प्रेरणा लेकर वर्तमान में भविष्य का चिंतन करना चाहिए


7. श्रद्धा के बिना पूजा-पाठ व्यर्थ है


8. हमें सिखाती है जिनवाणी, कोई कष्ट न पावे प्राणी
9. क्रोध मूर्खता से शुरू होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है


10. जीवन को भोग की नहीं, योग की तपोभूमि बनाएँ


11. जिन्हें सुंदर वार्तालाप करना नहीं आता, वही सबसे अधिक बोलते हैं


12. दूसरों के हित के लिए अपने सुख का त्याग करना ही सच्ची सेवा है


13. सभी धर्म महान हैं, किंतु मानव धर्म उन सबमें महान है


14. जो नमता है, वह परमात्मा को जमता है


15. जिसकी दृष्टि सम्यक हो, वह कभी कर्तव्य विमुख नहीं होता है


16. सम्यकत्व से रिक्त व्यक्ति चलता-फिरता शव है
17. प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित करती है


18. ईर्ष्या खाती है अंतरात्मा को, लालच खाता है ईमान को, क्रोध खाता है अक्ल को


19. धर्म पंथ नहीं पथ देता है


20.शत्रु के गुण ग्रहण कर लो और गुरु के गुण छोड़ दो


21. शुभ-अशुभ कर्मों का फल अवश्य मिलता है
22. धर्म का मूल मंत्र है 'झूठ से बचो'


23. यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं


24. यदि कल्पना का सदुपयोग करें तो वह परम हितैषिणी हो जाती है


25. झूठ से मेल करने से जीवन की सम्पदा नष्ट हो जाती है


26. डरना और डराना दोनों पाप हैं


27. पहले मानव बनें, मोक्ष का द्वार स्वतः खुल जाएगा


28. चरित्रहीन ज्ञान जीवन का बोझ है


29. सहिष्णुता कायरता का चिह्न नहीं है, वीरता का फल है


30. जिसने आत्मा को जान लिया, उसने लोक को पहचान लिया


31. मनुष्य स्वयं को शरीर से भिन्न नहीं समझता, इसलिए मृत्यु से भयभीत रहता है


32. छोटों के साथ सद्व्यवहार करके ही मनुष्य अपने बड़प्पन को प्रकट करता है


33. महान ध्येय का मौन में ही सृजन होता है


34. सच्चा प्रयास कभी निष्फल नहीं होता


35. मृत्यु शास्त्र का स्वाध्याय, सबसे बड़ा स्वाध्याय है


36. शास्त्र को शास्त्र ही रहने दो, उसका उपयोग शस्त्र के रूप में मत करो


37. तप के माध्यम से मान-प्रतिष्ठा की अभिलाषा नहीं रखना चाहिए


38. यह आत्मा ही अपने सुख-दुःख का भोक्ता है


39. अपने आप पर विजय प्राप्त करना ही सबसे बड़ी ‍िवजय है


40. गुस्सा अक्ल को खा जाता है


41. अहंकार मन को खा जाता है


42. लालच मान को खा जाता है


43. चिंता आयु को खा जाती है


44. दुनिया का सबसे अच्छा साथी आपका अपना निश्चय है


45. भूत सपना, भविष्य कल्पना, वर्तमान अपना, प्रभु नाम जपना


46. सत्य और अहिंसा से तुम संसार को अपने सम्मुख झुका सकते हो


47. सत्य भगवान है, सत्य लोक में सारभूत है


48. भयभीत मनुष्य सत्य के मार्ग का अनुसरण करने में समर्थ नहीं है


49. मैं उस आत्मारूपी देव की शरण में जाता हूँ, जो सब जीवों में विद्यमान है


50. अगर तुम सीखना चाहते हो तो भूलों से सीखो


51. बुराई के प्रति भलाई करो, बुराई दब जाएगी, बुराई के बदले बुराई करोगे तो बुराई लौटकर आएगी


52. भूल करना मनुष्य का स्वभाव है पर अपनी भूल को मानना महापुरुष का काम है


53. जिससे पाप हो जाता है वह मनुष्य है, जो उस पर पश्चाताप करता है वह मनुष्य है और जो पाप करके शेखी बघारता है, वह शैतान है


54. जिसका हृदय सहानुभूति के भाव से परिपूर्ण है, उसे ही आलोचना करने का अधिकार है



55. जैसे माता बच्चे को उठाने के लिए नीचे झुकती है उसी तरह हमें भी नीचे झुकना चाहिए और नीचे वाले को ऊपर उठाना चाहिए।


56. कोई किसी का मित्र नहीं और किसी का शत्रु नहीं है, बर्ताव से ही मित्र या शत्रु पैदा होते हैं


57. इंसान को चाहिए कि कभी उपकार को न भूलें, बल्कि उपकार से भी बढ़कर प्रत्युपकार दें


58. महापुरुष वे ही हैं जो समचित, क्षमावान, शील सम्पन्न और परोपकारी हैं


59. क्रोध को शांति से, मान को मृदुता से, कपट को सरलता से और लोभ को संतोष से जीतें, घमंड का त्याग ही सच्चा त्याग है


60. जीवन का एकमात्र उद्देश्य यह है कि हम जैसे हैं वैसे दिखें और जैसे बन सकते हैं, वैसे बनें


61. चार न बनो- १. कृतघ्न २ अभिमानी, ३ मायावी ४ दुराग्रही


62. चार से बचो- १. दुर्व्यसनों से २. अपनी प्रशंसा से ३. दूसरों की निंदा से ४. दूसरों के दोष से


63. चार पर विजय प्राप्त करो- १. इंद्रियों पर २. मन पर ३. वाणी पर ४. शरीर पर


64. जिनके साथ हमारा सहवास है, उनसे अपनी त्रुटियाँ देख सकते हैं और सुधार भी सकते हैं। बेहतर है कि हम रोज के व्यवहार को शुद्धतम रखें।

pranam
arjun raj